Sunday, 9 June 2013

KAAL SHARAP YOG

कालसर्प योग क्या है?

कालसर्प योग का विचार करनेसे पहले राहू केतू का विचार करना आवश्यक है। राहू सर्प का मु़ख माना गया है। तो केतू को पूंछ मानी जाती है। इस दो ग्रहोंकें कारण कालसर्प योग बनता है। इस संसार में जब कोई भी प्राणी जिस पल मे जन्म लेता है, वह पल(समय) उस प्राणी के सारे जीवन के लिए अत्यन्त ही महत्वपुर्ण माना जाता है। क्यों की उसी एक पल को आधार बनाकर ज्योतिष शास्त्र की सहायता सें उसके समग्र जीवन का एक ऐसा लेखा जोखा तैयार किया जा सकता है, जिससे उसके जीवन में समय समय पर घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाऔं के विषय में समय से पूर्व जाना जा सकता है।
जन्म समय के आधार पर बनायी गयी जन्म कुंडली के बारह भाव स्थान होते है । जन्मकुंडली के इन भावों में नवग्रहो की स्थिती योग ही जातक के भविष्य के बारे में जानकारी प्रकट करते है। जन्मकुंडली के विभिन्न भावों मे इन नवग्रहों कि स्थिति और योग से अलग अलग प्रकार के शुभ-अशुभ योग बनते है। ये योग ही उस व्यक्ती के जीवन पर अपना शुभ-अशुभ प्रभाव डालते है।
जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह राहु और केतु के एक ही और स्थित हों तो ऐसी ग्रह स्थिती को कालसर्प योग कहते है। कालसर्प योग एक कष्ट कारक योग है। सांसारीक ज्योतिषशास्त्र में इस योग के विपरीत परिणाम देखने में आते है। प्राचीन भारतीय ज्योतिषशास्त्र कालसर्प योग के विषय में मौन साधे बैठा है। आधुनिक ज्योतिष विव्दानों ने भी कालसर्प योग पर कोई प्रकाश डालने का कष्ट नहीं उठाया है की जातक के जीवन पर इसका क्या परिणाम होता है ?
राहु-केतु यानि कालसर्प योग
वास्तव में राहू केतु छायाग्रह है। उनकी उपनी कोई दृष्टी नही होती। राहू का जन्म नक्षत्र भरणी और केतू का जन्म नक्षत्र आश्लेषा हैं। राहू के जन्म नक्षत्र भरणी के देवता काल और केतु के जन्म नक्षत्र आश्लेषा के देवता सर्प है। इस दोष निवारण
हेतू हमारे वैदिक परंपरा के अनुसार ग्रह्शांती पुजन मे प्रमुख देवता राहू का उनके अधिदेवता काल और प्रत्यादि देवता सर्प
सहित पुजन अनिवार्य है।
काल
यदि काल का विचार किया जाये तो काल हि ईश्वर के प्रशासन क्षेत्र का अधिकारी है जन्म से लेकर मृत्यू तक सभी अवस्थाओं
के परिवर्तन चक्र काल के आधीन है। काल हि संसार का नियामक है।
कालसर्प योग से पिडीत जातक का भाग्य प्रवाह राहु केतु अवरुध्द करते है। जिसके परिणाम स्वरुप जातक की प्रगति नही होती। उसे जीवीका चलाने का साधन नहीं मिलता अगर मिलता है तो उसमें अनेक समस्यायें पैदा होती है। जिससे उसको जिविका चलानी मुश्किल हो जाती है। विवाह नही हो पाता। विवाह हो भी जाए तो संतान-सुख में बाधाएं आती है।
वैवाहीक जीवन मे कलहपुर्ण झगडे आदि कष्ट रहते हैं। हमेशा कर्जं के बोझ में दबा रहाता है और उसे अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पडते है।
दुर्भाग्य
जाने अन्जाने में किए गए कर्मो का परिणाम दुर्भाग्य का जन्म होता है।
दुर्भाग्य चार प्रकार के होते है-
1. अधिक परिश्रम के बाद भी फल न मिलना धन का अभाव बने रहना।
2. शारीरीक एवं मानसिक दुर्बलता के कारण निराशा उत्पन्न होती है। अपने जीवीत तन का बोझ ढाते हुए शीघ्र से
शीघ्र मृत्यु की कामना करता है।
3. संतान के व्दारा अनेक कष्ट मिलते है
4. बदचनल एवं कलहप्रिय पति या पती का मिलना है।
उपरोक्त दुर्भाग्य के चारों लक्षण कालसर्प युक्त जन्मांग में पूर्ण रूप से दृष्टिगत होते है।
कालसर्प योग से पिडित जातक दुर्भाग्य से मूक्ति पाने के लिए अनेक उपायो का सहारा लेता है वह हकीम वैदय डॉक्टरों के पास जाता है। धन प्राप्ति के अनेक उपाय करता है बार बार प्रयास करने पर भी सफलता नही मिलने पर अंत में उपाय ढुंढने के लिए वह ज्योतिषशास्त्र का सहारा लेता है।अपनी जन्म पत्री मे कौन कौन से दोष है कौन कौन से कुयोग से है उन्हें तलाशता है। पुर्वजन्म के पितृशाप, सर्पदोष, भातृदोष आदि दोष कोई उसकी कुंडली में है - कालसर्प योग।
कोई माने या न माने कालसर्प योग होता है। किसी के मानने या न मानने से शास्त्री य सिध्दांत न कभी बदले थे औ न ही बदलेंगे । शास्त्र आखिर शास्त्र हैं इसे कोई माने या न माने इससे कोई अंतर नही पडता । कालसर्प योग प्रमाणित है इसे प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

कालसर्प योगके बाराह प्रकार है।

१) अनंत कालसर्प योग
जब कुंडली मे प्रथम एवंम सप्तम स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को अनंत कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के चिंता, न्युनगंड, जलसे भय आदी प्रकारसे नुकसान होता है।
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२) कुलिक कालसर्प योग
जब कुंडली मे दुसरे एवंम आठवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को कुलिक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को आर्थिक हानी, अपघात, वाणी मे दोष, कुटुंब मे कलह, नर्व्हस ब्रेक डाउन आदी
आपतीयोंका सामना करना पडता है।
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३) वासुकि कालसर्प योग
जब कुंडली मे तीसरे एवंम नवम स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को वासुकि कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को भाई बहनोंसे हानी, ब्लडप्रेशर, आकस्मित मृत्यु तथा रिश्तेदारोंसे नुकसान होता है।
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४) शंखपाल कालसर्प योग
जब कुंडली मे चौथे एवंम दसवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शंखपाल कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके माता को पिडा, पितृसुख नही, कष्टमय जिवन, नोकरी मे बडतर्फी, परदेश जाकर
बुरी तरह मृत्यु आदी।
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५) पद्दम कालसर्प योग
जब कुंडली मे पांचवे एवंम ग्यारहवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को पद्दम कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके विध्याअध्ययन मे रुकावट, पत्नी को बिमारी, संतान प्राप्ती मे विलंब, मित्रोंसे हानी होती है।
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६) महापद्दम कालसर्प योग
जब कुंडली मे छ्ठे एवंम बारहवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को महापद्दम कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को कमर की पिडा, सरदर्द्, त्वचारोग्, धन की कमी, शत्रुपीडा यह सब हो सकता है
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७) तक्षक कालसर्प योग
जब कुंडली मे सातवे एवंम पहले स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को तक्षक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के दुराचारी, व्यापार मे हानी, वैवाहिक जीवन मे दु:ख, अपघात, नौकरीमे परेशानी
होती है।
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८) कर्कोटक कालसर्प योग
जब कुंडली मे आठवे एवंम दुसरे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को कर्कोटक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को पितृक संपत्ती का नाश, गुप्तरोग, हार्ट अटैक, कुटुंब मे तंटे और जहरीले जनवरोंसे
डर रहता है।
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९) शंखचुड कालसर्प योग
जब कुंडली मे नवम एवंम तीसरे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शंखचुड कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती धर्म का विरोध, कठोर वर्तन, हाय ब्लड प्रेशर, सदैव चिंता, संदेहास्पद चरीत्रवाला
होता है।
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१०) पातक कालसर्प योग
जब कुंडली मे दशम एवंम चौथे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को पातक कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती दुष्ट, दुराचारी लो ब्लड प्रेशर जीवन मे कष्ट, घर मे पिशाच्च पीडा, चोरी की
संभावना होती है।
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११) विषधर कालसर्प योग
जब कुंडली मे ग्यारहवे एवंम पांचवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को विषधर कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को अस्थिरता, संततीसंबंधी चिंता, जेल मे कैद होने की संभावना होती है।
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१२) शेषनाग कालसर्प योग
जब कुंडली मे बारहवे एवंम छ्ठे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शेषनाग कालसर्पयोग कहते है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ती अपयश, ऑंख की बिमारी, गुप्त शत्रुअओंकी पिडा, तंटे बखेडे आदी मुकाबला करना
पडता है।
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नियम :

कालसर्प शांती के लिये साथ में लाने के लिये आवश्यक सामग्री,
१) कालसर्प शांती एक दिन में संपन्न होनेवाली विधी है।
२) आपको मुहूर्त के एक दिन पहले शाम को यहा पर आना जरूरी है।
३) विधान के लिए नये सफेद वस्त्र ( धोती, गमछा ,नैपकिन , धर्मपत्नी के लिए साड़ी, ब्लाउज जिसका रंग काला
या हरा नही होना चाहीये।
४) इस विधी के लिए आपको एक सव्वा ग्राम सोने की नाग प्रतिमा लानी चाहिए। ओर ९ चांदी के नाग प्रतिमा लानी चाहिए।
५) विधी की अन्य व्यवस्था पंडीतजी व्दारा कि जाती है।
६) पूजा विधी के लिए ८ दिन पहले आपका नाम दूरध्वनी अथवा पत्र व्दारा आरक्षण करना अनिवार्य है। क्योंकी
आपकी सभी सुविधा हम कर सके
ज्योतिष् शास्त्र के अनुसार काल सर्प दोष कैसे पहचाने और उस का उपचार कैसे करें. पढ़िए काल सर्प दोष के बारे में.
ज्योतिष् शास्त्र के मुताबिक अगर किसी की कुंडली में सर्प दोष बनता है तो ऐसी योग में उत्पन्न जातक के व्यवसाय, धन, परिवार, संतान आदि के कारण जीवन अशांत हो जाता है.
राहु केतु को छाया ग्रह कहा जाता है. राहु केतु के कारण ही कालसर्प दोष बनता है क्योंकि राहु का नक्षत्र भारणी है.भारणी का स्वामी काल है. केतु का नक्षत्र आश्लेशा है और इस नक्षत्र के स्वामी सर्प है. इसलिए इनके प्रभाव में आते ही काल सर्प दोष कुंडली में बन जाता है.

जातक की कुंडली में काल सर्प दोष है या नही, यह हम कैसे पहचाने.
सर्प दोष वाले जातक को सपने में सांप दिखाई देना, पानी देखना, अपने को हवा में उड़ते देखना, अकस्मात मृत्यु तुल्य कष्ट मिलना, कामों में बार-बार रुकावट आनी, विचारों में बार-बार बदलाव कोई भी काम करने से पहले ग़लत सोचना पढ़ाई से मन उचाट होना, नशा करना, यदि इन में से कोई भी लक्षण विद्यमान है तो सर्प दोष विद्यमान है.

इसकी शांति के लिए विद्वान ज्योतिषी ब्राह्मण को दिखाकर काल सर्प दोष की शांति अवश्य करवाएं. काल सर्प दोष की शांति के लिए वैदिक ब्राह्मण के द्वारा समय समय पर रुद्राभिषेक अवश्य करवाएं.
सरल उपाय
1 प्रत्येक संक्रांति को गंगाजल और गोमूत्र का छिड़काव पूरे घर में करें.
2 हर सोमवार को भगवान शिव पर गंगाजल और और गाय के कच्चे दूध से अभिषेक करें.
3 कुत्ते को दूध और रोटी देना.
4 गाय और कौओं को घर की पहली रोटियों में तेल छिड़क कर खिलाना. 
5 सोना 7 रत्ती तांबा 16 रत्ती, चांदी 12 रत्ती मिलकर क्यू सांप के आकर की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में विशेष महूर्त में प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक धारण करें.
6 मोर पंख घर में किसी पवित्र जगह पर रखें और रात्रि में सोने से पहले मोर पंख से हवा करें.
7 भगवान शिव को कम से कम 11 बेल पत्र पर राहु और केतु लिखकर शनिवार के दिन अर्पण करने से भी काल सर्प दोष की शांति होती है.
कालसर्प दोष शांति के लिए बड़े धार्मिक उपाय के लिए समय या धन का अभाव होने पर यहां दोष शांति के कुछ ऐसे छोटे किंतु असरदार उपाय बताए जा रहे हैं, जो निश्चित रुप से आपके जीवन पर होने वाले बुरे असर को रोकते हैं –  
                             
जन्म कुण्डली में राहु और केतु की विशेष स्थिति से बनने वाले  कालसर्प योग एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी कुंडली में परिलक्षित होता है। व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है। 

तरह तरह के रोग भी उसे परेशान किये रहते हैं बुरे प्रभाव जीवन में तरह-तरह से बाधा पैदा कर सकते हैं। पूरी तरह से मेहनत करने पर भी अंतिम समय में सफलता से दूर हो सकते हैं। कालसर्प योग को लेकर यह धारणा बन चुकी है कि यह दु:ख और पीड़ा देने वाला ही योग है। 

जबकि इस मान्यता को लेकर ज्योतिष के जानकार भी एकमत नहीं है। हालांकि यह बात व्यावहारिक रुप से सच पाई गई है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु के बीच सारे ग्रहों के आने से कालसर्प योग बन जाता हैं। उस व्यक्ति का जीवन असाधारण होता है। उसके जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे जाते है।वास्तव में कालसर्प योग के असर से कभी व्यक्ति को जीवन में अनेक कष्टों से दो-चार होना पड़ सकता है तो कभी यही योग ऊंचें पद, सम्मान और सफलता का कारण भी बन जाता है। इस तरह माना जा सकता है कि कालसर्प योग हमेशा पीड़ा देने वाला नहीं होता है।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार कालसर्प योग का शुभ-अशुभ फल राशियों के स्वभाव और तत्व पर पर निर्भर करता है।

ज्योतिष विज्ञान अनुसार छायाग्रहों यानि दिखाई न देने वाले राहू और केतु के कारण कुण्डली में बने कालसर्प योग के शुभ होने पर जीवन में सुख मिलता है, किंतु इसके बुरे असर से व्यक्ति जीवन भर कठिनाईयों से जूझता रहता है राहु शंकाओं का कारक है और केतु उस शंका को पैदा करने वाला इस कारण से जातक के जीवन में जो भी दुख का कारण है वह चिरस्थाई हो जाता है,इस चिरस्थाई होने का कारण राहु और केतु के बाद कोई ग्रह नही होने से कुंडली देख कर पता किया जाता है,यही कालसर्प दोष माना जाता है,यह बारह प्रकार का होता है। दोष शांति का अचूक काल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग पूजा का विशेष काल है। यह घड़ी ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अहम मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के देवता शेषनाग हैं। इसलिए यह दिन बहुत शुभ फल देने वाला माना जाता है। नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष शांति के लिए नाग और शिव की विशेष पूजा और उपासना जीवन में आ रही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों और बाधाओं को दूर कर सुखी और शांत जीवन की राह आसान बनाती है।
  • राहु केतु मध्ये सप्तो विध्न हा काल सर्प सारिक:। 
  • सुतयासादि सकलादोषा रोगेन प्रवासे चरणं ध्रुवम।। 


कालसर्प योग के प्रकार

मूलरूप से कालसर्प योग के बारह प्रकार होते हैं  इन्हें यदि 12 लग्नों में विभाजित कर दें तो 12 x 12 =144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I परन्तु 144 प्रकार के कालसर्प योग तब संभव हैं जब शेष 7 ग्रह राहु से केतु के मध्य स्थित होँ I यदि शेष 7 ग्रह केतु से राहु के मध्य स्थित होँ, तो 12 x 12 = 144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I इसी प्रकार से कुल 144 + 144 = 288 प्रकार के कालसर्प योग स्थापित हो सकते हैं ईन सभी प्रकार के कालसर्प योगों का प्रतिफल एकदूसरे से भिन्न होता है I मूलरूप से कालसर्प योगों के बारह प्रकार हैं जो विश्वविख्यात सर्पों के नाम पर आधारित हैं.

1अनंत कालसर्प योग 
2 कुलिक कालसर्प योग 
3 वासुकि कालसर्प योग 
4 शंखपाल कालसर्प योग 
5पदम कालसर्प योग 
6 महापदम कालसर्प योग 
7 तक्षक कालसर्प योग 
8  कारकोटक कालसर्प योग 
9 शंखचूड़ कालसर्प योग 
10 घातक कालसर्प योग 11विषधर कालसर्प योग 12 शेषनाग कालसर्प योग . 

 कालसर्प दोष और कष्ट  ?

1.अनंत कालसर्प योग- यदि लग्न में राहु एवं सप्तम् में केतु हो, तो यह योग बनता है. जातक कभी शांत नहीं रहता. झूठ बोलना एवं षड़यंत्रों में फंस कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता रहता है. 
2.कुलिक कालसर्प योग- यदि राहु धन भाव में एवं केतु अष्टम हो, तो यह योग बनता है. इस योग में पुत्र एवं जीवन साथी सुख, गुर्दे की बीमारी, पिता सुख का अभाव एवं कदम कदम पर अपमान सहना पड़ सकता है.
3.वासुकी कालसर्प योग- यदि कुंडली के तृतीय भाव में राहु एवं नवम भाव में केतु हो एवं इसके मध्य सारे ग्रह हों, तो यह योग बनता है. इस योग में भाई-बहन को कष्ट, पराक्रम में कमी, भाग्योदय में बाधा, नौकरी में कष्ट, विदेश प्रवास में कष्ट उठाने पड़ते हैं.
4.शंखपाल  कालसर्प योग- यदि राहु नवम् में एवं केतु तृतीय में हो, तो यह योग बनता है. जातक भाग्यहीन हो अपमानित होता है, पिता का सुख नहीं मिलता एवं नौकरी में बार-बार निलंबित होता है.
5. पद्म कालसर्प योग- अगर पंचम भाव में राहु एवं एकादश में केतु हो तो यह योग बनता है, इस योग में संतान सुख का अभाव एवं वृद्धा अवस्था में दुखद होता है. शत्रु बहुत होते हैं, सट्टे में भारी हानि होती है.
6.महापद्म कालसर्प योग- यदि राहु छठें भाव में एवं केतु व्यय भाव में हो, तो यह योग बनता है इसमें पत्नी विरह, आय में कमी, चरित्र हनन का कष्ट भोगना पड़ता है.
7.तक्षक कालसर्प योग- यदि राहु सप्तम् में एवं केतु लग्न में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति नष्ट होती है, पत्नी सुख नहीं मिलता, बार-बार जेल यात्र करनी पड़ती है.
8.कर्कोटक कालसर्प योग- यदि राहु अष्टम में एवं केतु धन भाव में हो, तो यह योग बनता है. इस योग में भाग्य को लेकर परेशानी होगी. नौकरी की संभावनाएं कम रहती है, व्यापार नहीं चलता, पैतृक संपत्ति नहीं मिलती और नाना प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं.
9.शंखचूड़ कालसर्प योग- यदि राहु सुख भाव में एवं केतु कर्म भाव में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक के व्यवसाय में उतार-चढ़ाव एवं स्वास्थ्य खराब रहता  है
10.घातक कालसर्प योग- यदि राहु दशम् एवं केतु सुख भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं, माता या पिता का वियोग होता है. .
11.विषधर कालसर्प योग- यदि राहु लाभ में एवं केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसा जातक घर से दूर रहता है, भाईयों से विवाद रहता है, हृदय रोग होता है एवं शरीर जर्जर हो जाता है.
12.शेषनाग कालसर्प योग- यदि राहु व्यय में एवं केतु रोग में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक शत्रुओं से पीड़ित हो शरीर सुखित नहीं रहेगा, आंख खराब होगा एवं न्यायालय का चक्कर लगाता रहेगा.

काल सर्प योग में जन्मे जातक में प्रायः निम्नलिखित लक्षण पाए जाते है।

1- सपने में उसे नदी, तालाब,कुए,और समुद्र का पानी दिखाई देता है।
2-  सपने में वह खुद को पानी में गिरते एवं उससे बाहर निकलने का प्रयास करते करते हुए देखता है।
3-  रात को उल्टा होकर सोने पर ही चेन की नींद आती है |
4-  सपने में उसे मकान अथवा पेरो से फल आदि गिरते दिखाई देता है।
5-  पानी से ओर ज्यादा ऊंचाई से डर लगता है |
6- मन में कोई अज्ञात भय बना रहता है |
7-  वह खुद को अन्य लोगो से झगड़ते हुए देखता है।
8-  उन्हें बुरे सपने आते है जिसमे अक्सर साँप दिखाई देता है।
9-  यदि वह संतानहीन हो तो उसे किसी स्त्री के गोद में मृत बालक दिखाई देता है।
10- - सपने उसे विधवा स्त्रीयां दिखाई पड़ती है।
11- नींद में शरीर पर साप रेंगता महसूस होता है।
12-  श्रवन मास में मन हमेशा प्रफुलित रहता है |
ये कुछ प्रमुख लक्षण है जों किसी भी कालसर्प वाले जातक में दिखाई देते है कहने का मतलब यह की इन मे से सभी लक्षण नहीं हों तो भी काफी लक्षण मिलते है | इसलिए जिसकी भी कुंडली में कालसर्प योग हों वो छोटे उपाय करे ओर जीवन में खुशियों का आनंद ले |     

कालसर्प दोष भंग के लिए दैनिक छोटे उपाय

1 108 राहु यंत्रों को जल में प्रवाहित करें।
2 सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
3 शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग.।
4 अमावस्या के दिन पितरों को शान्त कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।
5 शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
6. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान पर सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।.
7 शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाये व मंत्र जाप करें (ग्यारह शनिवार )
8 सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
9 काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें ।
10 सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी में नागदेवता का विसर्जन करें।
11 श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
12 प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर -  हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें।  हर रोज श्रावण के महिने में करें।
13.  सरल उपाय- कालसर्प योग वाला युवा श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।
14  यदि रोजगार में तकलीफ आ रही है अथवा रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा है तो पलाश के फूल गोमूत्र में डूबाकर उसको बारीक करें। फिर छाँव में रखकर  सुखाएँ। उसका चूर्ण बनाकर चंदन के पावडर में मिलाकर शिवलिंग पर त्रिपुण्ड बनाएँ। 41 दिन  दिन में नौकरी अवश्य मिलेगी।.
15 शिवलिंग पर प्रतिदिन मीठा दूध उसी में भाँग डाल दें, फिर चढ़ाएँ इससे गुस्सा शांत होता है, साथ ही सफलता तेजी से मिलने लगती है।
16 किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 21 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि   श्रध्दापूर्वक   अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प  शिवलिंग पर समर्पित करें।
17 शत्रु से भय है तो चाँदी के अथवा ताँबे के सर्प बनाकर उनकी आँखों में सुरमा लगा दें, फिर शिवलिंग पर चढ़ा दें, भय दूर होगा व शत्रु का नाश होगा।
18  यदि पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका में क्लेश हो रहा हो, आपसी प्रेम की कमी हो रही हो तो भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या बालकृष्ण की मूर्ति जिसके सिर पर मोरपंखी मुकुट धारण हो घर में स्थापित करें एवं प्रतिदिन उनका पूजन करें एवं ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय  नम: शिवाय का यथाशक्ति जाप करे। कालसर्प योग की शांति होगी।
19  किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
20 किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें
21 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
22 महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
 23 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
24 86 शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें
25 नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
26 प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
27  कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराया जाना चाहिए और उनकी सलाह से राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए।)-
28 शिव के ही अंश बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है। 
29 प्रथम पूज्य शिव पुत्र श्री गणेश को विघ्रहर्ता कहा जाता है। इसलिए कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए गणेश पूजा भी करनी चाहिए।
30-पुराणों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालिय नाग का मद चूर किया था। इसलिए इस दोष शांति के लिए श्री कृष्ण की आराधना भी श्रेष्ठ है।
31विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
32 एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें

RAHU KAAL & GULIK KAAL

शुभ-अशुभ मुहूर्त दिन के अनुसार  
मुहूर्त क्यों देखा जाता है


हम हर काम मुहूर्त देखकर ही क्यों करते हैं? जाहिर है इसलिए कि हमें उस काम में सफलता मिले और वह काम बिना किस‍ी बाधा के संपन्न हो जाए। लेकिन हर दिन के शुभ-अशुभ समय को कैसे जाना जाए? पेश है, मुहूर्त से संबंधित रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी : 

सारा संसार ग्रहों की चालों एवं उनकी किरणों का पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों से आंदोलित रहता है। चाहे वह प्राणी जगत हो या फिर वनस्पति जगत। इसलिए ज्योतिष में उनकी अनुकूलता को मुहूर्त का नाम दिया है। प्रतिदिन अशुभ काल में शुभ कार्य न करें बल्कि शुभ काल में ही अपने कार्यों को करना चाहिए। जैसे- राहू काल में कोई शुभ कार्य व यात्रा तथा कोई व्यापार संबंधी तथा धन का लेन-देन न करें। राहू काल अनिष्टकारी बताया गया है। गुलीक काल में शुभ कार्य करें। राहू काल तथा गुलीक काल का विवरण निम्न प्रकार है-

राहू काल (अशुभ समय)

रविवार - सायं 4.30 से 6 बजे तक
सोमवार - प्रातः 7.30 से 9 बजे तक
मंगलवार- अपराह्न- 3 से 4.30 बजे तक
बुधवार- दोपहर 12 से 1.30 बजे तक
गुरुवार- दोपहर 1.30 से 3 बजे तक
शनिवार- प्रातः 9 से 10.30 बजे त

गुलीक काल (शुभ समय)

रविवार- अपराह्न- 3 से 4.30 बजे तक
सोमवार- दोपहर 1.30 से 3 बजे तक
मंगलवार - दोपहर 12 से 1.30 बजे तक
बुधवार - प्रातः 10.30 से 12 बजे तक
गुरुवार - प्रातः 9 से 10.30 बजे तक
शुक्रवार - प्रातः 7.30 से 9 बजे तक
शनिवार - प्रातः 6 से 7.30 बजे तक
ND

ोधूलि वेला- विवाह मुहूर्तों में क्रूर ग्रह, युति, वेध, मृत्युवाण आदि दोषों की शुद्धि होने पर भी यदि विवाह का शुद्ध लग्न न निकलता हो तो गोधूलि लग्न में विवाह संस्कार संपन्न करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है। 

जब सूर्यास्त न हुआ हो (अर्थात्‌ सूर्यास्त होने वाला हो) गाय आदि पशु अपने घरों को लौट रहे हों और उनके खुरों से उड़ी धूल उड़कर आकाश में छा रही हो तो उस समय को मुहूर्तकारों ने गोधूलि काल कहा है। इसे विवाहादि मांगलिक कार्यों में प्रशस्त माना गया है। इस लग्न में लग्न संबंधी दोषों को नष्ट करने की शक्ति है। 

आचार्य नारद के अनुसार सूर्योदय से सप्तम लग्न गोधूलि लग्न कहलाती है। पीयूषधारा के अनुसार सूर्य के आधे अस्त होने से 48 मिनट का समय गोधूलि कहलाता है। 

राशि के अनुसार मुहूर्त 

ND
जन्म के समय जिस नक्षत्र का जो चरण होता है उसके अनुसार रखे जाने वाले नाम से जो राशि बनती है उसे जन्म राशि कहते हैं। स्वेच्छा से लोकव्यवहार के लिए जो नाम रखा जाता है उस अक्षर के नक्षत्र और चरण के अनुसार जो राशि बनती है उसे नाम राशि कहा जाता है। 

जन्म राशि- विवाह, संपूर्ण मांगलिक कार्य, यात्रा और ग्रहों की स्थिति आदि में जन्म राशि की प्रधानता होती है। इन कार्यों में नाम राशि का विचार नहीं करना चाहिए। 

नाम राशि- देश, ग्राम गृह संबंधी कार्यों में, युद्ध में नौकरी और व्यापार में नाम राशि की प्रधानता होती है। इन कार्यों में जन्म राशि का विचार न करें। जन्म राशि के होने पर विवाहादि कार्य लग्न और ग्रहों के बल का विचार करके नाम राशि से ही कर लेना चाहिए

Saturday, 8 June 2013

Friday, 7 June 2013

NAVGRAH KE SHANTI UPAY

दान की परिभाषा और प्रकार


परिचय 

दान किसी वस्तु पर से अपना अधिकार समाप्त करके दूसरे का अधिकार स्थापित करना दान है। साथ ही यह आवश्यक है कि दान में दी हुई वस्तु के बदले में किसी प्रकार का विनिमय नहीं होना चाहिए। इस दान की पूर्ति तभी कही गई है जबकि दान में दी हुईं वस्तु के ऊपर पाने वाले का अधिकार स्थापित हो जाए। मान लिया जाए कि कोई वस्तु दान में दी गई किंतु उस वस्तु पर पानेवाले का अधिकार होने से पूर्व ही यदि वह वस्तु नष्ट हो गई तो वह दान नहीं कहा जा सकता। ऐसी परिस्थिति में यद्यपि दान देनेवाले को प्रत्यवाय नहीं लगता तथापि दाता को दान के फल की प्राप्ति भी नहीं हो सकती।

प्रकार 

सात्विक, राजस और तामस, इन भेदों से दान तीन प्रकार का कहा गया है। जो दान पवित्र स्थान में और उत्तम समय में ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिसने दाता पर किसी प्रकार का उपकार न किया हो वह सात्विक दान है। अपने ऊपर किए हुए किसी प्रकार के उपकार के बदले में अथवा किसी फल की आकांक्षा से अथवा विवशतावश जो दान दिया जाता है वह राजस दान कहा जाता है। अपवित्र स्थान एवं अनुचित समय में बिना सत्कार के, अवज्ञतार्पूक एवं अयोग्य व्यक्ति को जो दान दिया जात है वह तामस दान कहा गया है।
कायिक, वाचिक और मानसिक इन भेदों से पुन: दान के तीन भेद गिनाए गए हैं। संकल्पपूर्वक जो सूवर्ण, रजत आदि दान दिया जाता है वह कायिक दान है। अपने निकट किसी भयभीत व्यक्ति के आने पर जौ अभय दान दिया जाता है वह वाचिक दान है। जप और ध्यान प्रभृति का जो अर्पण किया जाता है उसे मानसिक दान कहते हैं।

दानपात्र 

जिस व्यक्ति को दान दिया जाता है उसे दान का पात्र कहते हैं। तपस्वी, वेद और शास्त्र को जाननेवाला और शास्त्र में बतलाए हुए मार्गं के अनुसार स्वयं आचरण करनेवाला व्यक्ति दान का उत्तम पात्र है। यहाँ गुरु का प्रथम स्थान है। इसके अनंतर विद्या, गुण एवं वय के अनुपात से पात्रता मानी जाती है। इसके अतिरिक्त जामाता, दौहित्र तथा भागिनेय भी दान के उत्तम पात्र हैं। ब्राह्मण को दिया हुआ दान षड्गुणित, क्षत्रिय को त्रिगुणित, वैश्य का द्विगुणित एवं शूद्र को जो दान दिया जाता है वह सामान्य फल को देनेवाला कहा गया है। उपर्युक्त पात्रता का परिगणन विशेष दान के निमित्त किया गया है। इसके सिवाय यदि अन्न और वस्त्र का दान देना हो तो उसके लिए उपर्युक्त पात्रता देखने की आवश्यकता नहीं है। तदर्थ बुभुक्षित और विवस्त्र होना मात्र ही पर्याप्त पात्रता कही गई है।

दाव्य

दातव्य द्रव्य के तीन भेद गिनाए गए हैं - शुक्ल, मिश्रित और कृष्ण। शास्त्र, तप, योग, परंपरा, पराक्रम, और शिष्य से उपलब्ध द्रव्य शुक्ल कहा गया है। कुसीद, कृषि और वाणिज्य से समागत द्रव्य मिश्रित बतलाया गया है। सेवा, द्यूत और चौर्य से प्राप्त द्रव्य को कृष्ण कहा है। शुक्ल द्रव्य के दान से सुख की प्राप्ति होती है। मिश्रित द्रव्य के दान से सुख एवं दु:ख, दोनों को उपलब्धि होती है। कृष्ण द्रव्य का दान दिया जाए तो केवल दु:ख ही मिलता है। द्रव्य की तीन ही परिस्थितियाँ देखी जाती हैं - दान, भोग और नाश। उत्तम कोटि के व्यक्ति अपने द्रव्य का उपयोग दान में करते हैं। मध्यम पुरुष अपने द्रव्य का व्यय उपभोग में करते हैं। इन दोनों से अतिरिक्त व्यक्ति अपने द्रव्य का उपयोग न दान में ही करते हैं न उपभोग में। उनका द्रव्य नाश को प्राप्त होता है। इस प्रकार के व्यक्तियों की गणना अधम कोटि में होती है।

दानविधि 

दान के महादान, लघुदान और सामानय दान प्रभृति अनेक भेद गिनाए गए हैं। महादान भी 16 तरह के कहे गए हैं। इनमें तुलादान को प्राथमिकता मिली हैं। इस तुलादान का अनुष्ठान तीन दिनों में संपन्न हाता है। प्रथम दिन तुलादान करनेवाला व्यक्ति और उस अनुष्ठान को संपादित करानेवाले विद्वान् लोग दूसरे दिन उपवास और नियमपालन करने का संकल्प करते हैं दूसरे दिन प्रात:काल उठकर अपने आवश्यक दैहिक कृत्य से निवृत्त होकर स्नान और दैनिक आह्निक से छुट्टी पाकर अनुष्ठानमंडप के निकट उपस्थित होते हैं। प्रारंभ में संकल्पपूर्वक महागणपतिपूजन, मातृकापूजन, वसोर्धारापूजन, नांदीश्राद्ध और पुण्याहवाचन होता है। प्रथम शुद्ध की हुई भूमि पर मंडप, कुंड और वेदियों का जो निर्माण हो चुका है उसका संस्कार किया जाता है वस्त्र, अलंकार और पताका से मंडप का प्रसाधन किया जाता है। यजमान के द्वारा अनुष्ठान के निमित्त आचार्य, ब्रह्मा और ऋत्विजों का वरण किया जाता है। सभी विद्वानों का मधुपर्क से अर्चन होता है। इस प्रकार के महादान के अवसर पर चारों वेदों के जानकार विद्वानों की अपेक्षा होती है। आचार्य की जानकारी उसी वेद की होनी चाहिए जो वेद यजमान का हो। यजमान के वेद के अनुसार अनुष्ठान का समस्त कार्य होना चाहिए। अन्य वेदों के जानकार विद्वानों में ऋग्वेदी विद्वान् मंडप के पूर्व द्वार पर, यजुर्वेदी विद्वान् दक्षिण द्वार पर, सामवेदी विद्वान् पश्चिम द्वार पर और अथर्ववेदी विद्वान् उत्तर द्वार पर बैठते हैं। वहीं पर बैठे हुए रक्षा एवं शांति के निमित्त वैदिक मंत्रपाठ करते हैं।
तीसरे दिन वैदिक शांतिपाठपूर्वक कुंड में सविधि अग्निस्थापन होता है। वेदियों पर देवता, दिक्पाल और नवग्रह प्रभृति का स्थापन और पूजन होता है। होतृगण देवता के प्रीत्यर्थ हवन करते हैं। अनंतर दिक्पालों के प्रीत्यर्थ बलिदान करके पूर्वांग कृत्य की समाप्ति होती है।
प्रधान कृत्य के प्रारंभ में यजमान के द्वारा विद्वानों को शय्या "दान" में दी जाती है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि अन्य विद्वानों को जो दिया जाए उससे आचार्य को द्विगुणित दिया जाना चाहिए। शय्यादान के अनंतर मंगलवाद्य एवं मंगलगीत के साथ प्रधान कृत्य का प्रारंभ होता है। सभी विद्वान् वैदिक मंत्रों का पाठ करते हुए यजमान को मांगलिक स्नान कराते हैं। अनंतर यजमान शुद्ध वस्त्र एवं माला धारण किए हुए अंजलि में पुष्प लेकर तुला की तीन प्रदक्षिणा करता है। अंजलि के पुष्पों को देवता को चढ़ाकर दाहिने हाथ में धर्मराज की और बाएँ हाथ में सूर्य की सुवर्णप्रतिमा लेता है। पूर्व की ओर मुँह किए हुए तुला के उत्तरी भाग में पद्मासन से बैठता है। अपने सम्मुख स्थापित विष्णु की प्रतिमा को देखता रहता है। विद्वान् लोग तुला के दक्षिण भाग पर सुवर्णखंड रखते हैं। ये सुवर्णखंड इतने होने चाहिए जो यजमान के बोझ से कुछ अधिक हों। इस प्रकार कुछ क्षण तुला पर बैठकर यजमान नीचे उतर आता है। तुला पर रखा हुआ स्वर्ण विद्वानों को अर्पित किया जाता है। इस सुवर्ण से अतिरिक्त भूमि, रत्न और दक्षिणा विद्वानों को दी जानी चाहिए। इस प्रकार तुलादान की संक्षिप्त रूपरेखा यहाँ दिखलाई गई हैं। इसके अतिरिक्त सुवर्णाचल, रौप्याचल और धान्याचल प्रभृति महादान एवं सामान्य दान हैं जो दान के विधानों के प्रतिपादक ग्रंथों में देखने चाहिए।
दान (जैन दृष्टि से) जैन ग्रंथों में पात्र, सम और अन्वय के भेद से दान के चार प्रकार बताए गए हैं। पात्रों को दिया हुआ दान पात्र, दीनदुखियों को दिया हुआ दान करुणा, सहधार्मिकों को कराया हुआ प्रीतिभोज आदि सम, तथा अपनी धनसंपत्ति को किसी उत्तराधिकारी को सौंप देने को अन्वय दान कहा है। दोनों में आहार दान, औषधदान, मुनियों को धार्मिक उपकरणों का दान तथा उनके ठहरने के लिए वसतिदान को मुख्य बताया गया है। ज्ञानदान और अभयदान को भी श्रेष्ठ दानों में गिना गया है।
वैदिक ग्रंथों के अनुसार दान करने के समय स्नान करके पहले शुद्ध स्थान को गोबर से लीप ले, फिर उसपर बैठकर दान दे, और उसके बाद दक्षिणा दे। जहाँ गंगा आदि तीर्थ हों उन्हीं स्थानों को दान के लिपे उपयुक्त कहा है। इन स्थानों पर गाय, तिल, जमीन और सुवर्ण आदि का दान करना चाहिए। बालकों के लिए खिलौने दान करने से विशेष पुण्य बताया है। ग्रहों की शांति के लिए भी दान विधान है।
श्रद्धा, तुष्टि, भक्ति, ज्ञान अलोभ, क्षमा और सत्य ये सात गुण दाता के लिए आवश्यक है। पड़गाहना करना, उच्च स्थान देना, चरणों का उदक ग्रहण करना, अर्चन करना, प्रणाम करना, मन वचन और काय तथा भोजन की शुद्धि रखना - इन नौ प्रकारों से दान देनेवाला दाता पुण्य का भागी होता है

दान की महिमा


दान तो सभी जाती और धर्म के लोग करते है मगर दान करने में भी दान से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है मन की भावना या श्रद्धा | श्रद्धा से और जरुरत मंद को किया गया दान ही पुण्यफल दाई होता है | अगर कोई इस ज़माने में करोडो रूपये खर्चा करके शानदार और आलिशान मंदिर बनवा देता है लेकिन जब कोई याचक आकर के एक रोटी या एक रूपया मांगता है तो उसको वहा से धुत्कार कर भगा देने से भी करोडो रुपये से बनाये मंदिर के फल का नाश हो जाता है | हमारे जैन धर्म में भी ये करोडो रुपियो से मंदिर बनाने की परम्परा है धनिक भामाशाह मंदिरों पर करोडो खार्चा कर देते है मगर कभी उन जैन संतो तक नहीं पहुँचते जो सारी दुनियादारी से अलग एकांत वास में अपने जीवन को साधना और तपस्या में लीन किये हुए मुस्किलो से दिन गुजारते है जबकि ये ही संत अनेक संतो से ज्यादा ज्ञानी और शुद्ध विचारवान होते है | अगर ऐसे संत को उसका समान के साथ जीवन जीने का साधन उपलब्ध करवा दे तो किसी मंदिर बनवाने से भी ज्यादा पुन्य का फल प्राप्त होगा |
इस विषय में ये युधिष्ठर की और ऋषि वेदव्यास की दान पर प्रकाश डालने वाली कथा बहुत ज्ञानवर्धक और आत्मा को झकझोरने वाली है |
महाराज युधिष्ठिर ने एक दिन ऋषि व्यास से पूछा, ‘हे महामुनि, दान और तपस्या में किसका फल अधिक सुखद है?’ व्यास बोले, ‘हे राजन्, दान से बढ़कर श्रेष्ठ कोई कार्य नहीं। धन प्राप्ति के लिए मनुष्य प्राणों का मोह त्याग दुष्कर कठिन कार्य करता है। अपनी मान-मर्यादा भुलाकर धन कमाता है। कष्ट से कमाए धन का ही दान संसार में सर्वश्रेष्ठ है। शुद्ध अंत:करण से सुपात्र को थोड़ा दान भी अनंत सुखदायी और फलदायी है।’
‘ हे मुनिश्रेष्ठ, वह कैसे, कृपया विस्तार से बताएं।’ महाराज युधिष्ठिर ने निवेदन किया। वेद व्यास ने कहा, ‘हे राजन् महर्षि मुद्गल ने एक द्रोण (साढ़े पंद्रह सेर) धान का शुद्ध मन से दान कर महान अमर पद प्राप्त कर लिया था। मुद्गल भिक्षाटन से पंद्रह दिनों में एक द्रोण धान एकत्र करते थे और उसी से यज्ञ करते थे लेकिन ऋषि दुर्वासा को प्रत्येक अमावस्या और पूर्णिमा पर दान देने के कारण वे परिवार सहित भूखे रह जाते थे। पर इतने पर भी दुर्वासा ने मुद्गल को सदा शांत और निर्मल चित्त पाया। उनके माथे पर कभी निराशा या क्रोध की रेखा नहीं पड़ी। ऋषि दुर्वासा ने मुद्गल की दान महिमा से प्रसन्न होकर कहा- हे ऋषि इंद्रिय विजय, धैर्य, दान और दया तुम में पूर्णरूप से विद्यमान है। तुमने अपने शुभ दान और कर्म से तीनों लोकों को जीत लिया है।
इसके बाद देवदूतों ने जब ऋषि मुद्गल को प्रणाम कर उनसे स्वर्ग चलने का आग्रह किया तो उन्होंने पूछा, स्वर्ग में क्या है? देवदूतों ने कहा, स्वर्ग में हर तरह की सुख-सुविधा है। वहां इच्छा मात्र से सब कुछ प्राप्त हो जाता है। पर मुद्गल ऋषि ने सोचा कि स्वर्ग में नया शुभ कर्म नहीं किया जा सकता और ऐश्वर्य का सुखद समय भी शुभ कर्मों के फलों का अंत होने पर एक दिन अवश्य समाप्त होगा। यह सोचकर उन्होंने स्वर्ग जाने से भी इनकार कर दिया और जनकल्याण में लगे रहे।’ इस कथा से युधिष्ठिर बहुत प्रभावित हुए

ग्रह शांति का अचूक उपाय : दान

ग्रह शांति के लिए लोग अनेकानेक उपाय करते है। दान उनमें प्रमुख है। कुंडली में ग्रहों एवं भावों से इसका सीधा संबंध है। ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के १२ भाव, ९ ग्रहों तथा २७ नक्षत्रों को मान्यता दी गई है। १२ को ९ से गुणा करने पर १०८ होता है। जिनका योग ९ होता है

सूर्य के उपाय

दान

  1. गाय का दान अगर बछड़े समेत
  2. गुड़, सोना, तांबा और गेहूं
  3. सूर्य से सम्बन्धित रत्न का दान
  4. दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए। सूर्य से सम्बन्धित वस्तुओं का दान रविवार के दिन दोपहर में ४० से ५० वर्ष के व्यक्ति को देना चाहिए. सूर्य ग्रह की शांति के लिए रविवार के दिन व्रत करना चाहिए. गाय को गेहुं और गुड़ मिलाकर खिलाना चाहिए. किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को गुड़ का खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के विपरीत प्रभाव में कमी आती है. अगर आपकी कुण्डली में सूर्य कमज़ोर है तो आपको अपने पिता एवं अन्य बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य की विपरीत दशा से आपको राहत मिल सकती है.
  5. सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठकर लाल पुष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए।
  1. रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
  2. ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।
  3. लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए।
  4. किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए।
  5. हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।
  6. लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
  7. सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें

आपका सूर्य कमज़ोर अथवा नीच का होकर आपको परेशान कर रहा है अथवा किसी कारण सूर्य की दशा सही नहीं चल रही है तो आपको गेहूं और गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए. इसके अलावा आपको इस समय तांबा धारण नहीं करना चाहिए अन्यथा इससे सम्बन्धित क्षेत्र में आपको और भी परेशानी महसूस हो सकती है.

चन्द्रमा के उपाय

दान

चन्द्रमा के नीच अथवा मंद होने पर शंख का दान करना उत्तम होता है. इसके अलावा सफेद वस्त्र, चांदी, चावल, भात एवं दूध का दान भी पीड़ित चन्द्रमा वाले व्यक्ति के लिए लाभदायक होता है. जल दान अर्थात प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाना से भी चन्द्रमा की विपरीत दशा में सुधार होता है. अगर आपका चन्द्रमा पीड़ित है तो आपको चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न दान करना चाहिए. चन्दमा से सम्बन्धित वस्तुओं का दान करते समय ध्यान रखें कि दिन सोमवार हो और संध्या काल हो. ज्योतिषशास्त्र में चन्द्रमा से सम्बन्धित वस्तुओं के दान के लिए महिलाओं को सुपात्र बताया गया है अत: दान किसी महिला को दें. आपका चन्द्रमा कमज़ोर है तो आपको सोमवार के दिन व्रत करना चाहिए. गाय को गूंथा हुआ आटा खिलाना चाहिए तथा कौए को भात और चीनी मिलाकर देना चाहिए. किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को दूध में बना हुआ खीर खिलाना चाहिए. सेवा धर्म से भी चन्द्रमा की दशा में सुधार संभव है. सेवा धर्म से आप चन्द्रमा की दशा में सुधार करना चाहते है तो इसके लिए आपको माता और माता समान महिला एवं वृद्ध महिलाओं की सेवा करनी चाहिए.कुछ मुख्य बिन्दु निम्न है-
  1. व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए। रात्रि में ऐसे स्थान पर सोना चाहिए जहाँ पर चन्द्रमा की रोशनी आती हो।
  2. ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह नहीं होना चाहिए।
  3. वर्षा का पानी काँच की बोतल में भरकर घर में रखना चाहिए।
  4. वर्ष में एक बार किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए।
  5. सोमवार के दिन मीठा दूध नहीं पीना चाहिए।
  6. सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।

क्या न करें

ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को प्रतिदिन दूध नहीं पीना चाहिए. स्वेत वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए. सुगंध नहीं लगाना चाहिए और चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिए.

मंगल के उपाय

पीड़ित व्यक्ति को लाल रंग का बैल दान करना चाहिए. लाल रंग का वस्त्र, सोना, तांबा, मसूर दाल, बताशा, मीठी रोटी का दान देना चाहिए. मंगल से सम्बन्धित रत्न दान देने से भी पीड़ित मंगल के दुष्प्रभाव में कमी आती है. मंगल ग्रह की दशा में सुधार हेतु दान देने के लिए मंगलवार का दिन और दोपहर का समय सबसे उपयुक्त होता है. जिनका मंगल पीड़ित है उन्हें मंगलवार के दिन व्रत करना चाहिए और ब्राह्मण अथवा किसी गरीब व्यक्ति को भर पेट भोजन कराना चाहिए. मंगल पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 10 से 15 मिनट ध्यान करना उत्तम रहता है. मंगल पीड़ित व्यक्ति में धैर्य की कमी होती है अत: धैर्य बनाये रखने का अभ्यास करना चाहिए एवं छोटे भाई बहनों का ख्याल रखना चाहिए.
  1. लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।
  2. ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।
  3. बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है।
  4. लाल वस्त्र ले कर उसमें दो मुठ्ठी मसूर की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए।
  5. मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर ले कर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।
  6. बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
  7. अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
  8. मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें

आपका मंगल अगर पीड़ित है तो आपको अपने क्रोध नहीं करना चाहिए. अपने आप पर नियंत्रण नहीं खोना चाहिए. किसी भी चीज़ में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए और भौतिकता में लिप्त नहीं होना चाहिए

बुध के उपाय

बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए. हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है. हरे रंग की चूड़ी और वस्त्र का दान किन्नरो को देना भी इस ग्रह दशा में श्रेष्ठ होता है. बुध ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी ग्रह की पीड़ा में कमी ला सकती है. इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है.बुध की दशा में सुधार हेतु बुधवार के दिन व्रत रखना चाहिए. गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए. ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए. बुध की दशा में सुधार के लिए विष्णु सहस्रनाम का जाप भी कल्याणकारी कहा गया है. रविवार को छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है. अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है. मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है.
  1. अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
  2. बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान करनी चाहिए।
  3. हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
  4. बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
  5. घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
  6. अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
  7. तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
  8. बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

बृहस्पति के उपाय

बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है. इस ग्रह की शांति के लए बृहस्पति से सम्बन्धित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है. दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो. दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है.बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए. कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पंक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए. ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए. रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सिंचना चाहिए. गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है. केला का सेवन और सोने वाले कमड़े में केला रखने से बृहस्पति से पीड़ित व्यक्तियों की कठिनाई बढ़ जाती है अत: इनसे बचना चाहिए।
  1. ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
  2. सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
  3. ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
  4. किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
  5. ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
  6. गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
  7. गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
  8. गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

शुक्र के उपाय

शुक्र ग्रहों में सबसे चमकीला है और प्रेम का प्रतीक है. इस ग्रह के पीड़ित होने पर आपको ग्रह शांति हेतु सफेद रंग का घोड़ा दान देना चाहिए. रंगीन वस्त्र, रेशमी कपड़े, घी, सुगंध, चीनी, खाद्य तेल, चंदन, कपूर का दान शुक्र ग्रह की विपरीत दशा में सुधार लाता है. शुक्र से सम्बन्धित रत्न का दान भी लाभप्रद होता है. इन वस्तुओं का दान शुक्रवार के दिन संध्या काल में किसी युवती को देना उत्तम रहता है.शुक्र ग्रह से सम्बन्धित क्षेत्र में आपको परेशानी आ रही है तो इसके लिए आप शुक्रवार के दिन व्रत रखें. मिठाईयां एवं खीर कौओं और गरीबों को दें. ब्राह्मणों एवं गरीबों को घी भात खिलाएं. अपने भोजन में से एक हिस्सा निकालकर गाय को खिलाएं. शुक्र से सम्बन्धित वस्तुओं जैसे सुगंध, घी और सुगंधित तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. वस्त्रों के चुनाव में अधिक विचार नहीं करें.
  1. काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
  2. शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
  3. किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।
  4. किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय १० वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।
  5. अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
  6. किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।
  7. शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।
  8. शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

शनि के उपाय

जिनकी कुण्डली में शनि कमज़ोर हैं या शनि पीड़ित है उन्हें काली गाय का दान करना चाहिए. काला वस्त्र, उड़द दाल, काला तिल, चमड़े का जूता, नमक, सरसों तेल, लोहा, खेती योग्य भूमि, बर्तन व अनाज का दान करना चाहिए. शनि से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है. शनि ग्रह की शांति के लिए दान देते समय ध्यान रखें कि संध्या काल हो और शनिवार का दिन हो तथा दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति ग़रीब और वृद्ध हो.शनि के कोप से बचने हेतु व्यक्ति को शनिवार के दिन एवं शुक्रवार के दिन व्रत रखना चाहिए. लोहे के बर्तन में दही चावल और नमक मिलाकर भिखारियों और कौओं को देना चाहिए. रोटी पर नमक और सरसों तेल लगाकर कौआ को देना चाहिए. तिल और चावल पकाकर ब्राह्मण को खिलाना चाहिए. अपने भोजन में से कौए के लिए एक हिस्सा निकालकर उसे दें. शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं शनिस्तोत्रम का पाठ भी बहुत लाभदायक होता है. शनि ग्रह के दुष्प्रभाव से बचाव हेतु गरीब, वृद्ध एवं कर्मचारियो के प्रति अच्छा व्यवहार रखें. मोर पंख धारण करने से भी शनि के दुष्प्रभाव में कमी आती है.
  1. शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।
  2. शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।
  3. शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए।
  4. भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
  5. भिखारी को उड़द की दाल की कचोरी खिलानी चाहिए।
  6. किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।
  7. घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए।
  8. शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ फल देता है।

क्या न करें

जो व्यक्ति शनि ग्रह से पीड़ित हैं उन्हें गरीबों, वृद्धों एवं नौकरों के प्रति अपमान जनक व्यवहार नहीं करना चाहिए. नमक और नमकीन पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए, सरसों तेल से बनें पदार्थ, तिल और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए. शनिवार के दिन सेविंग नहीं करना चाहिए और जमीन पर नहीं सोना चाहिए.शनि से पीड़ित व्यक्ति के लिए काले घोड़े की नाल और नाव की कांटी से बनी अंगूठी भी काफी लाभप्रद होती है परंतु इसे किसी अच्छे पंडित से सलाह और पूजा के पश्चात ही धारण करना चाहिए. साढ़े साती से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भी शनि का यह उपाय लाभप्रद है. शनि का यह उपाय शनि की सभी दशा में कारगर और लाभप्रद है.

राहु के उपाय

अपनी शक्ति के अनुसार संध्या को काले-नीले फूल, गोमेद, नारियल, मूली, सरसों, नीलम, कोयले, खोटे सिक्के, नीला वस्त्र किसी कोढ़ी को दान में देना चाहिए। राहु की शांति के लिए लोहे के हथियार, नीला वस्त्र, कम्बल, लोहे की चादर, तिल, सरसों तेल, विद्युत उपकरण, नारियल एवं मूली दान करना चाहिए. सफाई कर्मियों को लाल अनाज देने से भी राहु की शांति होती है. राहु से पीड़ित व्यक्ति को इस ग्रह से सम्बन्धित रत्न का दान करना चाहिए. राहु से पीड़ित व्यक्ति को शनिवार का व्रत करना चाहिए इससे राहु ग्रह का दुष्प्रभाव कम होता है. मीठी रोटी कौए को दें और ब्राह्मणों अथवा गरीबों को चावल और मांसहार करायें. राहु की दशा होने पर कुष्ट से पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए. गरीब व्यक्ति की कन्या की शादी करनी चाहिए. राहु की दशा से आप पीड़ित हैं तो अपने सिरहाने जौ रखकर सोयें और सुबह उनका दान कर दें इससे राहु की दशा शांत होगी.
  1. ऐसे व्यक्ति को अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
  2. हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।
  3. अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है।
  4. जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
  5. दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नही करना चाहिए।
  6. यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो, तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
  7. झुठी कसम नही खानी चाहिए।
  8. राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें

मदिरा और तम्बाकू के सेवन से राहु की दशा में विपरीत परिणाम मिलता है अत: इनसे दूरी बनाये रखना चाहिए. आप राहु की दशा से परेशान हैं तो संयुक्त परिवार से अलग होकर अपना जीवन यापन करें.

केतु के उपाय

किसी युवा व्यक्ति को केतु कपिला गाय, दुरंगा, कंबल, लहसुनिया, लोहा, तिल, तेल, सप्तधान्य शस्त्र, बकरा, नारियल, उड़द आदि का दान करने से केतु ग्रह की शांति होती है। ज्योतिषशास्त्र इसे अशुभ ग्रह मानता है अत: जिनकी कुण्डली में केतु की दशा चलती है उसे अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं. इसकी दशा होने पर शांति हेतु जो उपाय आप कर सकते हैं उनमें दान का स्थान प्रथम है. ज्योतिषशास्त्र कहता है केतु से पीड़ित व्यक्ति को बकरे का दान करना चाहिए. कम्बल, लोहे के बने हथियार, तिल, भूरे रंग की वस्तु केतु की दशा में दान करने से केतु का दुष्प्रभाव कम होता है. गाय की बछिया, केतु से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है. अगर केतु की दशा का फल संतान को भुगतना पड़ रहा है तो मंदिर में कम्बल का दान करना चाहिए. केतु की दशा को शांत करने के लिए व्रत भी काफी लाभप्रद होता है. शनिवार एवं मंगलवार के दिन व्रत रखने से केतु की दशा शांत होती है. कुत्ते को आहार दें एवं ब्राह्मणों को भात खिलायें इससे भी केतु की दशा शांत होगी. किसी को अपने मन की बात नहीं बताएं एवं बुजुर्गों एवं संतों की सेवा करें यह केतु की दशा में राहत प्रदान करता है