Saturday, 15 February 2014

JYOTISH SHASTRA

ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले व्यक्ति को ज्योतिषी, ज्योतिर्विद, कालज्ञ, त्रिकालदर्शी, सर्वज्ञ आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। सांवत्सर, गुणक देवज्ञ, ज्योतिषिक, ज्योतिषी, मोहूर्तिक, सांवत्सरिक आदि शब्द भी ज्योतिषी के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।
• ज्योतिष व ज्योतिषी के संबंध में सभी परिभाषाओं का सुन्दर समाहार हमें वराहमिहिर की वृहद संहिता से प्राप्त होता है। वराहमिहिर लिखते हैं ग्रह गणित (सिद्धांत) विभाग में स्थित पौलिश, रोमक, वरिष्ट सौर, पितामह इन पाँच सिद्धांतों मेंप्रतिपादित युग, वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र, प्रहर, मुहूर्त, घटी, पल, प्राण, त्रुटि आदि के क्षेत्र का सौर, सावन, नक्षत्र, चन्द्र इन चारों मानों को तथा अधिक मास, क्षय मास, इनके उत्पत्ति कारणों के सूर्य आदि ग्रहों को शीघ्र तुन्द दक्षिणा उत्तर, नीच और उच्च गतियों के कारणों को सूर्य-चन्द्र ग्रहण में स्पर्श, मोक्ष इनके दिग्ज्ञान, स्थिति, विभेद वर्ग को बताने में दक्ष, पृथ्वी, नक्षत्रों के भ्रमण, संस्थान अक्षांश, चरखण्ड, राश्योदय, छाया, नाड़ी, करण आदि को जानने वाला, ज्योतिष विषयक समस्त प्रकार की शंकाओं व प्रश्न भेदों को जानने वाला तथा परीक्षा की काल की कसौटी में, आग और शरण से परीक्षित शुद्ध स्वर्ण की तरह स्वच्छ, साररूप वाणी बोलने वाला, निश्चयात्मक ज्ञान से सम्पन्न व्यक्ति ज्योतिषी कहलाता है। इस प्रकार से शास्त्र ज्ञान से सम्पन्न ज्योतिषी को होरा शास्त्र में भी अच्छी तरह से निष्णात होना चाहिए, तभी गुण सम्पन्न ज्योतिषी की वाणी कभी भी खाली नहीं जाती।
ज्योतिषी के लक्षण
एक ज्योतिषी के लक्षण बताते हुए आचार्य वराहमिहिर कहते हैं कि ज्योतिषी को देखने में प्रिय, वाणी में संयत, सत्यवादी, व्यवहार में विनम्र होना चाहिए। इसके अतिरिक्त वह दुर्व्यसनों से दूर, पवित्र अन्तःकरण वाला, चतुर, सभा में आत्मविश्वास के साथ बोलने वाला, प्रतिभाशाली, देशकाल व परिस्थिति को जानने वाला, निर्मल हृदय वाला, ग्रह शान्ति के उपायों को जानने वाला, मन्त्रपाठ में दक्ष, पौष्टिक कर्म को जानने वाला, अभिचार मोहन विद्या को जानने वाला, देवपूजन, व्रत-उपवासों को निरंतर, प्राकृतिक शुभाशुभों के संकेतों को समझाने वाला, ग्रहों की गणित, सिद्धांत संहिता व होरा तीनों में निपुण ग्रंथी के अर्थ को जानने वाला व मृदुभाषी होना चाहिए।
सामुद्रिक शास्त्र में ज्योतिषी के लिए हिदायत दी गई है कि सूर्योदय के पहले, सूर्यास्त के बाद, मार्ग में चलते हुए, जहाँ हँसी-मनोविनोद होता हो, उस स्थान में एवं अज्ञानी लोगों की सभा में भविष्यवाणी न करें।
ज्योतिषी को अधिकतम अपने स्थान पर बैठकर जिज्ञासु व्यक्ति की दक्षिणा का फल, पुष्प व पुण्य भाव को प्राप्त करने के पश्चात अपने ईष्ट को ध्यान करके ही हस्तरेखाओं एवं कुण्डलियों पर फलादेश करना चाहिए क्योंकि ईश्वर, ज्योतिषी व राजा के पास खाली हाथ आया व्यक्ति खाली ही जाता है।

• जन्म कुंडली आप के जीवन में प्रकाश ला सकती है , अगर किसी का जन्म दिन , जन्म समय और जन्म स्थान एकदम ठीक है तो किसी भी विद्वान से अपनी कुंडली के बारे में गड़ना जरुर कराएँ … जन्म पत्रिका के अनुसार कार्य करने से जीवन में प्रायः सफलता मिलती है…. कर्मो के अनुसार अच्छे – बुरे फल मिलते है,वैदिक विधियों द्वारा किया गया उपाय कभी खाली नहीं जाता है , अच्छे कर्मों से आप अपनी किस्मत बना भी सकते है और उसे ख़राब भी कर सकते है ..….. जन्म पत्रिका से अनेक लाभ है …
• कुंडली में १२ भाव होते है प्रत्येक भाव का अपना फल है जैसे :-
• १-आपके जीवन में कौन कौन सी परेशानियां हैं, और कब आएगी…? , शरीर क्यों और कब साथ नहीं देता इसका पता होना चाहिए।…? इन्शान के अन्दर सभी गुण होते हुए भी वो आखिर लाचार क्यों रहता है ….?
• २- धन – सम्पति सम्बंधित जानकारी …? . धन का संग्रह ना होना ,
• ३- आपकी कुण्डली में कहीं दोष तो नहीं जो आपके भाई बहन के साथ सम्बन्ध खराब कर दे और साझेदारी या व्यापर करने में आप को आपर में कलह करना पड़े.,…?
• ४- मकान , वाहन, जमीन-जायदाद लेने के बाद या अचानक काम में नुक्सान या लेने के बाद भी सुख- सुविधावो में कमी या आपके घर में क्लेश क्यों रहता है ?
• ५. किस विषय को चुने जो आप को नई उचाई पर ले जायेगा…? साथ ही संतान के बारे में जाने की हमारे बच्चे दुख का कारण तो नही बन रहें हैं और आगे साथ देगे भी या नहीं …..?
• ६- आपके जीवन में कौन सा बुरा वक्त कब और कैसे आएगा , कहीं आपके मित्र ही शत्रु न बन जाये , या आप का अपना ही शारीर आप का साथ न छोड़ दे .. दुर्घटना या बिमारी कैसे आ सकती है, कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसके लिए आपने अपना पूरा जीवन अच्छा करें वही आपको धोखा दें .?,
• ७- आपकी कुण्डली में शादी के बाद जीवन साथी का सुख है या नहीं और होगा भी तो कब होगी , प्रेम विवाह करने के बाद भी तलाक की मुशीबत न आये …?
• ८- विदेश यात्रा … कुंडली में जन्म स्थान से दूर जाने को ही विदेशा यात्रा कहते है ,,,,? अकस्मात दुर्घटना कही आप की जीवन में तो नहीं होगी….?
• ९- आप का भाग्य आप का साथ देगा या नहीं , कही आप अपना कीमती समय बस यूँ ही मौज मस्ती में गुजार रहे है, आपको बहुत ज्यादा सफलता क्यों नही मिलती या कब मिलेगी ?….? १०- व्यापर करे तो कौन सा करें , पिता से कितना सहयोग मिलेगा , पैत्रिक सम्पति मिलेगी या नहीं ,..
• ११- जीवन में लाभ होगा या नहीं और होगा भी तो कब होगा और कैसे या हमारे बड़े भाई – बहन या सगे सम्बन्धी साथ देगे या नहीं , ..?
• १२ भाव हमें हानी के बारे में बताता है जैसे किस कार्य को करे जिससे हमें हानी न हो या कही आपका बिज़नस पार्टनर ही आप को नुकसान न पहुंचा दे , या जिसे आप अपना समझते है वो सिर्फ आप की दौलत से प्यार करते है …..
• जिस भाव में जो ग्रह अशुभ फल प्रदान करे उसका हमें उपाय करना चाहिए ,



ज्योतिष के अनुसार कुंडली में बताए गए अशुभ योगों में से एक है कालसर्प योग। इस योग के प्रभाव व्यक्ति को कड़ी मेहनत करना पड़ती है, फिर भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष बन रहा है तो उसे यहां बताया जा रहा उपाय करना चाहिए...
यदि कुंडली में कालसर्प दोष हो तो इस योग के कारण पैसों की तंगी बनी रहती है और पारिवारिक रिश्तों में खटास उत्पन्न होने की संभावनाएं रहती हैं।
कालसर्प योग के प्रभाव से मुक्ति के कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। इसकीविधिवत पूजा के लिए केवल दो ही स्थान नासिक और उज्जैन श्रेष्ठ माने गए हैं। शास्त्रों के अनुसार इन दो स्थानों पर ही कालसर्प योग की शांति के लिए पूजा कराने का विधान बताया गया है।
कालसर्प दोष के निवारण की पूजा के अतिरिक्त एक अन्य उपाय बताया गया है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग है उसकी शांति के लिए उसे किसी पवित्र नदी में छोटे से चांदी के नाग-नागिन बनवाकर बहा देना चाहिए।
किसी भी शुभ मुहूर्त में चांदी के नाग-नागिन का छोटा सा जोड़ा बनवाएं। फिर ब्रह्ममुहूर्त में स्नान आदि कर्म करने के बाद नदी के तट पर जाएं। इसके बाद इष्टदेव, शिवजी तथा अन्य देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए।
इसके बाद नाग देवता से कालसर्प योग के दुष्प्रभाव समाप्त करने की प्रार्थना करें और चांदी के नाग-नागिन को नदी में प्रवाहित कर दें। इस उपाय से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां शांत होने लगती है। पैसों से जुड़ी समस्याओं में कमी आ जाती है।


अब हम आपको कुछ वो योग बता रहे हैं जो किसी स्त्री की कुंडली में विद्यमान हों तो उसे दामफ्त्य सुख प्रदान करने वाले पति की प्राप्ति सहज रूप से होती है.

१. सप्तम भाव में सप्तमेष स्वग्रही हो
२. सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दॄष्टि ना होकर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो अथवा स्वयं सप्तमेश सप्तम भाव को देखता हो.
३. सप्तमस्थ कोई नीच ग्रह ना हो यदि सप्त भाव में कोई उच्च ग्रह हो तो अति सुंदर योग होता है.
४. सप्तम भाव में कोई पाप ग्रह ना होकर शुभ ग्रह विद्यमान हों और षष्ठेश या अष्टमेश की उपस्थिति सप्तम भाव में कदापि नही होनी चाहिये.
५. स्वयं सप्तमेश को षष्ठ, अष्टम एवम द्वादश भाव में नहीं होना चाहिये. सप्तमेश के साथ कोई पाप ग्रह भी नही होना चाहिये साथ ही स्वयं सप्तमेश नीच का नही होना चाहिये.
६. सप्तमेश उच्च राशिगत होकर केंद्र त्रिकोण में हो.
७. वॄहस्पति भी स्वग्रही या उच्च का होकर बलवान हो, दु:स्थानगत ना हो, उस पर पाप प्रभाव ना हो तो अति श्रेष्ठ दांपत्य सुख प्राप्त होता है.
८ मंगल भी बलवान हो. मंगल पर राहु शनि की युति अथवा दॄष्टि प्रभाव नही होना चाहिये.


AAPKI GARI KE NUMBER

आपका वाहन नम्बर 
आज के भागमभाग दौर को सुविधाजनक और आसान बनाने के लिये, वाहन जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है. जीवन का यह अभिन्न अंग अगर हमें सुविधा देता है तो दुर्घटनाओं से ह्रदयविदारक कष्ट भी पहुंचाता है. कुछ समझदार लोगों का मानना होता है कि अगर गाड़ी चालाते समय सावधानी रखें तो जीवन मे दुर्घटनायें नही होगी. परंतु बहुत से जगहों पे ये देखने को मिलता है कि फलां आदमी बहुत ही आराम से गाड़ी चलाता है लेकिन फिर भी दुर्घटना घट गई और फलां आदमी बहुत ही गलत और बेढ़ंगे वाहन चलाता है फिर भी कभी कुछ नही होता है.

अगर हुम अंक ज्योतिष की मानें तो ये आदमी के मुलांक या भाग्यांक और गाड़ी नम्बर के मुलांक के कारण होता है.मान लें कि आपका मुलांक 1 है और गाड़ी नम्बर का कुल योग 6 या 8 आ रहा है तो दुर्घटनाओं की सम्भावना ज्यादा होती है और अगर 7 आता है तो इसकी सम्भावना कम हो जाती है. इसका कारण यह है कि 6 नम्बर मुलांक 1 के साथ शत्रु भाव रखता है जब कि 7 मित्र भाव रखता है. इसी प्रकार हर एक नम्बर का मित्र नम्बर और शत्रु नम्बर होता है जिसका वर्णन नीचे किया जा रहा है. इसकी मदद से आप बहुत हद तक ऐसे अनहोनी से बच सकते है.

अगर आपका मुलांक या भाग्यांक 1 आता है तो आपको गाड़ी नम्बर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 रखना चाहिये. 6 या 8 नम्बर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आप पीले, सुनहरे, अथवा क्रीम रंग का वाहन खरीदें. नीले,भुरे, बैगनी या काले रंग की वाहन क्रय करने से बचें.

अगर आपका मुलांक या भाग्यांक 2 आता है तो आपको गाड़ी नम्बर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 रखना चाहिये. 9 नम्बर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आप सफेद अथवा हल्के रंग का वाहन खरीदें. लाल अथवा गुलाबी रंग की वाहन क्रय करने से बचें.

अगर आपका मुलांक या भाग्यांक 3 आता है तो आपको गाड़ी नम्बर का कुल योग 3,6, या 9 रखना चाहिये. 5 या 8 नम्बर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आप पीले, बैंगनी , अथवा गुलाबी रंग का वाहन खरीदें. हल्के हरे सफेद ,भुरे रंग की वाहन क्रय करने से बचें.

अगर आपका मुलांक या भाग्यांक 4 आता है तो आपको गाड़ी नम्बर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 रखना चाहिये. 9, 6 या 8 नम्बर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आप नीले अथवा भुरे रंग का वाहन खरीदें. गुलाबी या काले रंग की वाहन क्रय करने से बचें.

अगर आपका मुलांक या भाग्यांक 5 आता है तो आपको गाड़ी नम्बर का कुल योग 5 रखना चाहिये. 3, 9 या 8 नम्बर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आप हल्के हरे, सफेद अथवा भुरे रंग का वाहन खरीदें. पीले, गुलाबी या काले रंग की वाहन क्रय करने से बचें

अगर आपका मुलांक या भाग्यांक 6 आता है तो आपको गाड़ी नम्बर का कुल योग 3, 6, या 9 रखना चाहिये. 4 या 8 नम्बर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आप हल्के नीले , गुलबी , अथवा पीले रंग का वाहन खरीदें. कले रंग की वाहन क्रय करने से बचें.

अगर आपका मुलांक या भाग्यांक 7 आता है तो आपको गाड़ी नम्बर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 रखना चाहिये. 9 या 8 नम्बर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आप नीले , अथवा सफेद रंग का वाहन खरीदें.

अगर आपका मुलांक या भाग्यांक 8 आता है तो आपको गाड़ी नम्बर का कुल योग 8 रखना चाहिये. 1 या 4 नम्बर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आप काले, नीले, अथवा बैगनी रंग का वाहन खरीदें.

अगर आपका मुलांक या भाग्यांक 9 आता है तो आपको गाड़ी नम्बर का कुल योग 9, 3, या 6 रखना चाहिये. 5 या 7 नम्बर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आप लाल , अथवा गुलाबी रंग का वाहन खरीदें.

SURYA DEV KI SHANTI KE UPAY

जानिए सभी ग्रहों के दोष निवारण/शांति के सामान्य उपाय/टोटके—-
- सूर्य के उपाय -
दान -
गाय का दान अगर बछड़े समेत
गुड़ , सोना , तांबा और गेहूं
सूर्य से सम्बन्धित रत्न का दान
दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए। सूर्य से सम्बन्धित वस्तुओं का दान रविवार के दिन दोपहर में ४० से ५० वर्ष के व्यक्ति को देना चाहिए. सूर्य ग्रह की शांति के लिए रविवार के दिन व्रत करना चाहिए. गाय को गेहुं और गुड़ मिलाकर खिलाना चाहिए. किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को गुड़ का खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के विपरीत प्रभाव में कमी आती है. अगर आपकी कुण्डली में सूर्य कमज़ोर है तो आपको अपने पिता एवं अन्य बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य की विपरीत दशा से आपको राहत मिल सकती है.
सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठकर लाल पुष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए।
रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।
लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए।
किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए।
हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।
लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते हैं।



चन्द्रमा:- न केवल मनुष्य अपितु संसार के समस्त प्राणियों की देह में मन ही वह एकमात्र वस्तु है, जिसमें आगे भविष्य की सभी सम्भावनाओं के अंकुर विद्यामान रहते हैं. इसी मनतत्व का कारक ग्रह है---चन्द्रमा. कहा भी गया है कि 'चन्द्रमा मनसो जात:" अर्थात चन्द्रमा ही मन की शक्तियों का अधिष्ठाता है. अगर व्यक्ति की जन्मकुंडली में चन्द्रमा निर्बल अथवा अन्य किसी प्रकार से अनिष्ट प्रभाव में हो तो मानसिक रूप से तनाव, दुर्बल मन:स्थिति, शारीरिक एवं आर्थिक परेशानी, छाती-फेफडे संबंधी रोग-बीमारी, माता को कष्ट, सिरदर्द आदि जीवन में कष्टकारी स्थितियाँ निर्मित होती हैं. ऎसे में व्यक्ति को अपनी कुलदेवी या देवता की उपासना करनी चाहिए. नि:संदेह लाभ मिलेगा और कष्टों से मुक्ति प्राप्त होगी.


मंगल:- मंगल ग्रह ऋषि भारद्वाज कुलोत्पन्न ग्रह है, जो कि क्षत्रिय जाति, रक्तपूर्ण एवं पूर्व दिशा का अधिष्ठाता है. जिन व्यक्तियों का जन्मकुंडली में मंगल अच्छा होता है, उनका भाग्योदय 28वें वर्ष की आयु मेम आरम्भ हो जाता है. मनुष्य में विज्ञान एवं पराक्रम की अभिव्यक्ति मंगल ग्रह के फलस्वरूप ही होती है. सत्ता पलट एवं राजनेताओं की हत्या के पीछे अशुभ मंगल की बडी अहम भूमिका होती है. क्योंकि यह भाई से विरोध, अचल सम्पत्ति में विवाद, सैनिक-पुलिस कारवाई, अग्निकाँड, हिँसा, चोरी, अपराध और गुस्से का कारक ग्रह है. इससे जिगर के रोग, मधुमेह, बवासीर एवं होंठ फटना आदि स्थितियाँ भी उत्पन्न होती हैं. ऎसे में व्यक्ति को हनुमान जी की उपासना---जैसे सुन्दरकांड, हनुमान बाहुक, हनुमदस्तोत्र, हनुमान चालीसा आदि का नित्यप्रति पाठ करना चाहिए और साथ में मिष्ठान आदि प्रशाद रूप में गरीबों में बाँटते रहना चाहिए. ध्यान रहे---वह प्रशाद स्वयं न खाये.

बुध की उत्पत्ति ---
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बुध की उत्पत्ति से जो कथा जु़डी है, वह है चंद्रमा द्वारा बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण। गर्भवती होने पर तारा ने बृहस्पति के डर से गर्भ को इषीकास्तम्ब में विसर्जित कर दिया। इषीकास्तम्ब से जब दीप्तिमान एवं सुंदर बालक बुध का जन्म हुआ तो चंद्रमा एवं बृहस्पति दोनों ने ही उसे अपना पुत्र माना तथा जातकर्म संस्कार करना चाहा। बृहस्पति ने प्रतिवाद में कहा कि पुत्र क्षेत्री का होता है। मात्रा क्षेत्रिणी होती है और पिता क्षेत्री, अत: बृहस्पति ने बुध पर अपना अधिकार माना। जब यह विवाद बहुत अधिक बढ़ गया, तब ब्रह्मा जी ने अपने प्रभाव का प्रयोग करते हुए हस्तक्षेप किया। ब्रह्मा जी के पूछने पर तारा ने उसे चंद्रमा का पुत्र होना स्वीकार किया तथा ब्रह्मा जी ने उस बालक को चंद्रमा को दे दिया। चंद्रमा के पुत्र माने जाने के कारण बुध को क्षत्रिय माना गया, यदि उन्हें बृहस्पति का पुत्र माना जाता तो ब्राrाण माना जाता। चंद्रमा ने बुध के पालन-पोषण का दायित्व अपनी प्रिय पत्नी रोहिणी को दिया। रोहिणी द्वारा पालन-पोषण किए जाने के कारण बुध का नाम रौहिणेय भी है। पद्म पुराण में उल्लेख है कि बुध ने हस्ति शास्त्र का निर्माण किया।

तारोदरविनिष्क्रान्त: कुमार: सूर्यसन्निभ:

सवार्थशास्त्रविद्वान् हस्तिशास्त्रप्रवत्तüक:।

राझ: सोमस्य पुत्रत्वाद्राजपुत्रो बुध: स्मृत:

नाम यद्राजपुत्रोùयं विश्रुतो राजवैद्यक:H


बुध के उपाय -
बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए. हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है. हरे रंग की चूड़ी और वस्त्र का दान किन्नरो को देना भी इस ग्रह दशा में श्रेष्ठ होता है. बुध ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी ग्रह की पीड़ा में कमी ला सकती है. इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है.बुध की दशा में सुधार हेतु बुधवार के दिन व्रत रखना चाहिए. गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए. ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए. बुध की दशा में सुधार के लिए विष्णु सहस्रनाम का जाप भी कल्याणकारी कहा गया है. रविवार को छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है. अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है. मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है.
अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान करनी चाहिए।
हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।



बृहस्पति :- उत्तर दिशा का स्वामी ग्रह बृहस्पति देवताओं का गुरू है. इसकी कृपा मात्र से ही संसार को ज्ञान तथा गरिमा की प्राप्ति होती है. यह अपने तेज से समूचे संसार को चमत्कृत कर देता है. जन्मकुंडली में बृहस्पति के शुभ होने की स्थिति में यह 16वें वर्ष से ही व्यक्ति का भाग्योदय कराने लगता है. किन्तु यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में यह अशुभ अथवा निर्बल हो तो संतान सुख में कमी, गृहस्थ जीवन में व्यवधान, स्वजनों से वियोग, जीवनसाथी से तनाव एवं घर में आर्थिक विपन्नता निर्मित करता है. गौरतलब है कि तब पीलिया, एकान्तिक ज्वर, हड्डी का दर्द, पुरानी खाँसी का उभरना, दमा अथवा श्वसन संबंधी रोग-बीमारी भी प्रदान करता है. 
ऎसे में व्यक्ति को हरि पूजन, हरिवंश पुराण या श्रीमदभागवत क नित्यप्रति पाठ करना चाहिए.



शुक्र :- शुक्र दैत्यों के गुरू हैं, भृगु ऋषि के पुत्र होने के कारण जिन्हे भृगुनन्दन भी कहा जाता है. वीर्यशक्ति पर शुक्र ग्रह का विशेष आधिपत्य है. यह कामसूत्र का कारक है ओर शुभ होने की स्थिति में व्यक्ति का 25वें वर्ष की आयु में भाग्योदय करा देता है. अगर जन्मकुंडली में शुक्र निर्बल अथवा अनिष्ट स्थिति में हो तो व्यक्ति को खुशी के अवसर पर गम, भूतप्रेत बाधा, शीघ्रपतन, सेक्स संबंधी परेशानी, संतान उत्पन्न करने में अक्षमता, दुर्बल-अशक्त शरीर, अतिसार, अजीर्ण, त्वचा एवं वायु विकार इत्यादि कईं तरह के कष्टों का सामना करना पडता है. इसलिए व्यक्ति को शुक्र की शुभता बनाये रखने की खातिर सदैव श्रीलक्ष्मी जी का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए. नित्यप्रति श्रीसूक्त का पाठ करते रहें.

राहु:- राहु एक छाया ग्रह है.राहु राजनीति के क्षेत्र का सर्वोप्रमुख कार्केश ग्रह है, जो कि अशुभ प्रभावों में विशेष लाभकारी रहता है. इसके विपरीत होने की स्थिति में आकस्मिक घटना, वैराग्य, ऋण का भार चढ जाना, शत्रुतों की तरफ से पीडा-परेशानी, लडाई-झगडा, जेलयात्रा, मुकद्दमा-कोर्ट कचहरी, अपमानजन्य स्थितियाँ, मिरगी-तपेदिक-बवासीर एवं विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों का सामना करना पडता है. 
ऎसी स्थिति उत्पन होने पर व्यक्ति को सरस्वती आराधना का आश्रय लेना चाहिए. नित्यप्रति श्रीसरस्वती चालीसा का पाठ करे, साथ में कम से कम एक बार किसी गरीब कन्या के विवाह पर यथासामर्थ्य धन की मदद करे तो अशुभता को शुभता में बदलने मे देर नहीं लगेगी.



केतु:- केतु भी राहु की भान्ति ही छाया ग्रह है, जिसका प्रभाव बिल्कुल मंगल की तरह होता है. इसके निर्बल होने या दुष्प्रभाव से निगूढ विद्याओं का आत्मज्ञान होना अथवा मन में वैराग्य के भाव जागृत होना मुख्य फल है. मूर्छा, चक्कर आना, आँखों के अन्धेरा छा जाना, रीढ की हड्डी में चोट/रोग, मूत्र संबंधी विकार, ऎश्वर्य नाश अर्थात जीवन में सब कुछ पाकर एक दम से खो देना, पुत्र का दुर्व्यवहार तथा पुत्र पर संकट इत्यादि भीषण दु:खों का सामना करना पडता है. 
इसके कुप्रभावों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु व्यक्ति को एक बार जीवन में बछिया का दान अवश्य करना चाहिए. साथ में गणेश जी की उपासना करें तो कष्टों से अवश्य छुटकारा मिलेगा.


केतु के उपाय -
किसी युवा व्यक्ति को केतु कपिला गाय, दुरंगा, कंबल, लहसुनिया, लोहा, तिल, तेल, सप्तधान्य शस्त्र, बकरा, नारियल, उड़द आदि का दान करने से केतु ग्रह की शांति होती है। ज्योतिषशास्त्र इसे अशुभ ग्रह मानता है अत: जिनकी कुण्डली में केतु की दशा चलती है उसे अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं. इसकी दशा होने पर शांति हेतु जो उपाय आप कर सकते हैं उनमें दान का स्थान प्रथम है. ज्योतिषशास्त्र कहता है केतु से पीड़ित व्यक्ति को बकरे का दान करना चाहिए. कम्बल, लोहे के बने हथियार, तिल, भूरे रंग की वस्तु केतु की दशा में दान करने से केतु का दुष्प्रभाव कम होता है. गाय की बछिया, केतु से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है. अगर केतु की दशा का फल संतान को भुगतना पड़ रहा है तो मंदिर में कम्बल का दान करना चाहिए. केतु की दशा को शांत करने के लिए व्रत भी काफी लाभप्रद होता है. शनिवार एवं मंगलवार के दिन व्रत रखने से केतु की दशा शांत होती है. कुत्ते को आहार दें एवं ब्राह्मणों को भात खिलायें इससे भी केतु की दशा शांत होगी. किसी को अपने मन की बात नहीं बताएं एवं बुजुर्गों एवं संतों की सेवा करें यह केतु की दशा में राहत प्रदान करता है।



विवाह योग के लिये जो कारक मुख्य है वे इस प्रकार हैं——-
सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है।
सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है।
कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है.
यदि सप्तम भाव में सम राशि है.
सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है.
सप्तमेश बली है.
सप्तम में कोई ग्रह नही है.
किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है।
दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।
सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।




शनि के उपाय -
जिनकी कुण्डली में शनि कमज़ोर हैं या शनि पीड़ित है उन्हें काली गाय का दान करना चाहिए. काला वस्त्र, उड़द दाल, काला तिल, चमड़े का जूता, नमक, सरसों तेल, लोहा, खेती योग्य भूमि, बर्तन व अनाज का दान करना चाहिए. शनि से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है. शनि ग्रह की शांति के लिए दान देते समय ध्यान रखें कि संध्या काल हो और शनिवार का दिन हो तथा दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति ग़रीब और वृद्ध हो.शनि के कोप से बचने हेतु व्यक्ति को शनिवार के दिन एवं शुक्रवार के दिन व्रत रखना चाहिए. लोहे के बर्तन में दही चावल और नमक मिलाकर भिखारियों और कौओं को देना चाहिए. रोटी पर नमक और सरसों तेल लगाकर कौआ को देना चाहिए. तिल और चावल पकाकर ब्राह्मण को खिलाना चाहिए. अपने भोजन में से कौए के लिए एक हिस्सा निकालकर उसे दें. शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं शनिस्तोत्रम का पाठ भी बहुत लाभदायक होता है. शनि ग्रह के दुष्प्रभाव से बचाव हेतु गरीब, वृद्ध एवं कर्मचारियो के प्रति अच्छा व्यवहार रखें. मोर पंख धारण करने से भी शनि के दुष्प्रभाव में कमी आती है.
शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।
शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।
शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए।
भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए.
भिखारी को उड़द की दाल की कचोरी खिलानी चाहिए।
किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।
घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए.
शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ फल देता है।



शनि दोष-

1. यदि शरीर में हमेशा थकान व आलसभरा लगने लगे।
2. नहाने-धोने से अरुचि होने लगे या नहाने का वक्त ही न मिले।
3. नए कपड़े खरीदने या पहनने का मौका न मिले।
4. नए कपड़े व जूते जल्दी-जल्दी फटने लगें।
5. घर में तेल, राई, दालें फैलने लगे या नुकसान होने लगे।
6. अलमारी हमेशा अव्यवस्‍िथत रहने लगे।
7. भोजन से बिना कारण अरु‍चि होने लगे।
8. सिर व पिंडलियों में, कमर में दर्द बना रहे।
9. परिवार में पिता से अनबन होने लगे।
10. पढ़ने-लिखने से, लोगों से मिलने से उकताहट होने लगे, चिड़चिड़ाहट होने लगे।