कालसर्प योग का विचार करनेसे पहले राहू केतू का विचार करना आवश्यक है। राहू सर्प का मु़ख माना गया है। तो केतू को पूंछ मानी जाती है। इस दो ग्रहोंकें कारण कालसर्प योग बनता है। इस संसार में जब कोई भी प्राणी जिस पल मे जन्म लेता है, वह पल(समय) उस प्राणी के सारे जीवन के लिए अत्यन्त ही महत्वपुर्ण माना जाता है। क्यों की उसी एक पल को आधार बनाकर ज्योतिष शास्त्र की सहायता सें उसके समग्र जीवन का एक ऐसा लेखा जोखा तैयार किया जा सकता है, जिससे उसके जीवन में समय समय पर घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाऔं के विषय में समय से पूर्व जाना जा सकता है।
जन्म समय के आधार पर बनायी गयी जन्म कुंडली के बारह भाव स्थान होते है । जन्मकुंडली के इन भावों में नवग्रहो की स्थिती योग ही जातक के भविष्य के बारे में जानकारी प्रकट करते है। जन्मकुंडली के विभिन्न भावों मे इन नवग्रहों कि स्थिति और योग से अलग अलग प्रकार के शुभ-अशुभ योग बनते है। ये योग ही उस व्यक्ती के जीवन पर अपना शुभ-अशुभ प्रभाव डालते है।
जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह राहु और केतु के एक ही और स्थित हों तो ऐसी ग्रह स्थिती को कालसर्प योग कहते है। कालसर्प योग एक कष्ट कारक योग है। सांसारीक ज्योतिषशास्त्र में इस योग के विपरीत परिणाम देखने में आते है। प्राचीन भारतीय ज्योतिषशास्त्र कालसर्प योग के विषय में मौन साधे बैठा है। आधुनिक ज्योतिष विव्दानों ने भी कालसर्प योग पर कोई प्रकाश डालने का कष्ट नहीं उठाया है की जातक के जीवन पर इसका क्या परिणाम होता है ?
राहु-केतु यानि कालसर्प योग
वास्तव में राहू केतु छायाग्रह है। उनकी उपनी कोई दृष्टी नही होती। राहू का जन्म नक्षत्र भरणी और केतू का जन्म नक्षत्र आश्लेषा हैं। राहू के जन्म नक्षत्र भरणी के देवता काल और केतु के जन्म नक्षत्र आश्लेषा के देवता सर्प है। इस दोष निवारण
हेतू हमारे वैदिक परंपरा के अनुसार ग्रह्शांती पुजन मे प्रमुख देवता राहू का उनके अधिदेवता काल और प्रत्यादि देवता सर्प
सहित पुजन अनिवार्य है।
काल
यदि काल का विचार किया जाये तो काल हि ईश्वर के प्रशासन क्षेत्र का अधिकारी है जन्म से लेकर मृत्यू तक सभी अवस्थाओं
के परिवर्तन चक्र काल के आधीन है। काल हि संसार का नियामक है।
कालसर्प योग से पिडीत जातक का भाग्य प्रवाह राहु केतु अवरुध्द करते है। जिसके परिणाम स्वरुप जातक की प्रगति नही होती। उसे जीवीका चलाने का साधन नहीं मिलता अगर मिलता है तो उसमें अनेक समस्यायें पैदा होती है। जिससे उसको जिविका चलानी मुश्किल हो जाती है। विवाह नही हो पाता। विवाह हो भी जाए तो संतान-सुख में बाधाएं आती है।
वैवाहीक जीवन मे कलहपुर्ण झगडे आदि कष्ट रहते हैं। हमेशा कर्जं के बोझ में दबा रहाता है और उसे अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पडते है।
दुर्भाग्य
जाने अन्जाने में किए गए कर्मो का परिणाम दुर्भाग्य का जन्म होता है।
दुर्भाग्य चार प्रकार के होते है-
1. अधिक परिश्रम के बाद भी फल न मिलना धन का अभाव बने रहना।
2. शारीरीक एवं मानसिक दुर्बलता के कारण निराशा उत्पन्न होती है। अपने जीवीत तन का बोझ ढाते हुए शीघ्र से
शीघ्र मृत्यु की कामना करता है।
3. संतान के व्दारा अनेक कष्ट मिलते है
4. बदचनल एवं कलहप्रिय पति या पती का मिलना है।
उपरोक्त दुर्भाग्य के चारों लक्षण कालसर्प युक्त जन्मांग में पूर्ण रूप से दृष्टिगत होते है।
कालसर्प योग से पिडित जातक दुर्भाग्य से मूक्ति पाने के लिए अनेक उपायो का सहारा लेता है वह हकीम वैदय डॉक्टरों के पास जाता है। धन प्राप्ति के अनेक उपाय करता है बार बार प्रयास करने पर भी सफलता नही मिलने पर अंत में उपाय ढुंढने के लिए वह ज्योतिषशास्त्र का सहारा लेता है।अपनी जन्म पत्री मे कौन कौन से दोष है कौन कौन से कुयोग से है उन्हें तलाशता है। पुर्वजन्म के पितृशाप, सर्पदोष, भातृदोष आदि दोष कोई उसकी कुंडली में है - कालसर्प योग।
कोई माने या न माने कालसर्प योग होता है। किसी के मानने या न मानने से शास्त्री य सिध्दांत न कभी बदले थे औ न ही बदलेंगे । शास्त्र आखिर शास्त्र हैं इसे कोई माने या न माने इससे कोई अंतर नही पडता । कालसर्प योग प्रमाणित है इसे प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
कालसर्प योगके बाराह प्रकार है।
१) अनंत कालसर्प योग जब कुंडली मे प्रथम एवंम सप्तम स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को अनंत कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के चिंता, न्युनगंड, जलसे भय आदी प्रकारसे नुकसान होता है। |  |
२) कुलिक कालसर्प योग जब कुंडली मे दुसरे एवंम आठवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को कुलिक कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को आर्थिक हानी, अपघात, वाणी मे दोष, कुटुंब मे कलह, नर्व्हस ब्रेक डाउन आदी आपतीयोंका सामना करना पडता है। |  |
३) वासुकि कालसर्प योग जब कुंडली मे तीसरे एवंम नवम स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को वासुकि कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को भाई बहनोंसे हानी, ब्लडप्रेशर, आकस्मित मृत्यु तथा रिश्तेदारोंसे नुकसान होता है। |  |
४) शंखपाल कालसर्प योग जब कुंडली मे चौथे एवंम दसवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शंखपाल कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके माता को पिडा, पितृसुख नही, कष्टमय जिवन, नोकरी मे बडतर्फी, परदेश जाकर बुरी तरह मृत्यु आदी। |  |
५) पद्दम कालसर्प योग जब कुंडली मे पांचवे एवंम ग्यारहवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को पद्दम कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके विध्याअध्ययन मे रुकावट, पत्नी को बिमारी, संतान प्राप्ती मे विलंब, मित्रोंसे हानी होती है। |  |
६) महापद्दम कालसर्प योग जब कुंडली मे छ्ठे एवंम बारहवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को महापद्दम कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को कमर की पिडा, सरदर्द्, त्वचारोग्, धन की कमी, शत्रुपीडा यह सब हो सकता है |  |
७) तक्षक कालसर्प योग जब कुंडली मे सातवे एवंम पहले स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को तक्षक कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के दुराचारी, व्यापार मे हानी, वैवाहिक जीवन मे दु:ख, अपघात, नौकरीमे परेशानी होती है। |  |
८) कर्कोटक कालसर्प योग जब कुंडली मे आठवे एवंम दुसरे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को कर्कोटक कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को पितृक संपत्ती का नाश, गुप्तरोग, हार्ट अटैक, कुटुंब मे तंटे और जहरीले जनवरोंसे डर रहता है। |  |
९) शंखचुड कालसर्प योग जब कुंडली मे नवम एवंम तीसरे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शंखचुड कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती धर्म का विरोध, कठोर वर्तन, हाय ब्लड प्रेशर, सदैव चिंता, संदेहास्पद चरीत्रवाला होता है। |  |
१०) पातक कालसर्प योग जब कुंडली मे दशम एवंम चौथे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को पातक कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती दुष्ट, दुराचारी लो ब्लड प्रेशर जीवन मे कष्ट, घर मे पिशाच्च पीडा, चोरी की संभावना होती है।
|  |
११) विषधर कालसर्प योग जब कुंडली मे ग्यारहवे एवंम पांचवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को विषधर कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को अस्थिरता, संततीसंबंधी चिंता, जेल मे कैद होने की संभावना होती है। |  |
१२) शेषनाग कालसर्प योग जब कुंडली मे बारहवे एवंम छ्ठे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शेषनाग कालसर्पयोग कहते है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ती अपयश, ऑंख की बिमारी, गुप्त शत्रुअओंकी पिडा, तंटे बखेडे आदी मुकाबला करना पडता है। |  |
नियम :
कालसर्प शांती के लिये साथ में लाने के लिये आवश्यक सामग्री,
१) कालसर्प शांती एक दिन में संपन्न होनेवाली विधी है।
२) आपको मुहूर्त के एक दिन पहले शाम को यहा पर आना जरूरी है।
३) विधान के लिए नये सफेद वस्त्र ( धोती, गमछा ,नैपकिन , धर्मपत्नी के लिए साड़ी, ब्लाउज जिसका रंग काला
या हरा नही होना चाहीये।
४) इस विधी के लिए आपको एक सव्वा ग्राम सोने की नाग प्रतिमा लानी चाहिए। ओर ९ चांदी के नाग प्रतिमा लानी चाहिए।
५) विधी की अन्य व्यवस्था पंडीतजी व्दारा कि जाती है।
६) पूजा विधी के लिए ८ दिन पहले आपका नाम दूरध्वनी अथवा पत्र व्दारा आरक्षण करना अनिवार्य है। क्योंकी
आपकी सभी सुविधा हम कर सके
ज्योतिष् शास्त्र के अनुसार काल सर्प दोष कैसे पहचाने और उस का उपचार कैसे करें. पढ़िए काल सर्प दोष के बारे में.
ज्योतिष् शास्त्र के मुताबिक अगर किसी की कुंडली में सर्प दोष बनता है तो ऐसी योग में उत्पन्न जातक के व्यवसाय, धन, परिवार, संतान आदि के कारण जीवन अशांत हो जाता है.
राहु केतु को छाया ग्रह कहा जाता है. राहु केतु के कारण ही कालसर्प दोष बनता है क्योंकि राहु का नक्षत्र भारणी है.भारणी का स्वामी काल है. केतु का नक्षत्र आश्लेशा है और इस नक्षत्र के स्वामी सर्प है. इसलिए इनके प्रभाव में आते ही काल सर्प दोष कुंडली में बन जाता है.
जातक की कुंडली में काल सर्प दोष है या नही, यह हम कैसे पहचाने.
सर्प दोष वाले जातक को सपने में सांप दिखाई देना, पानी देखना, अपने को हवा में उड़ते देखना, अकस्मात मृत्यु तुल्य कष्ट मिलना, कामों में बार-बार रुकावट आनी, विचारों में बार-बार बदलाव कोई भी काम करने से पहले ग़लत सोचना पढ़ाई से मन उचाट होना, नशा करना, यदि इन में से कोई भी लक्षण विद्यमान है तो सर्प दोष विद्यमान है.
इसकी शांति के लिए विद्वान ज्योतिषी ब्राह्मण को दिखाकर काल सर्प दोष की शांति अवश्य करवाएं. काल सर्प दोष की शांति के लिए वैदिक ब्राह्मण के द्वारा समय समय पर रुद्राभिषेक अवश्य करवाएं.
सरल उपाय
1 प्रत्येक संक्रांति को गंगाजल और गोमूत्र का छिड़काव पूरे घर में करें.
2 हर सोमवार को भगवान शिव पर गंगाजल और और गाय के कच्चे दूध से अभिषेक करें.
3 कुत्ते को दूध और रोटी देना.
4 गाय और कौओं को घर की पहली रोटियों में तेल छिड़क कर खिलाना.
5 सोना 7 रत्ती तांबा 16 रत्ती, चांदी 12 रत्ती मिलकर क्यू सांप के आकर की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में विशेष महूर्त में प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक धारण करें.
6 मोर पंख घर में किसी पवित्र जगह पर रखें और रात्रि में सोने से पहले मोर पंख से हवा करें.
7 भगवान शिव को कम से कम 11 बेल पत्र पर राहु और केतु लिखकर शनिवार के दिन अर्पण करने से भी काल सर्प दोष की शांति होती है.
कालसर्प दोष शांति के लिए बड़े धार्मिक उपाय के लिए समय या धन का अभाव होने पर यहां दोष शांति के कुछ ऐसे छोटे किंतु असरदार उपाय बताए जा रहे हैं, जो निश्चित रुप से आपके जीवन पर होने वाले बुरे असर को रोकते हैं –
जन्म कुण्डली में राहु और केतु की विशेष स्थिति से बनने वाले कालसर्प योग एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी कुंडली में परिलक्षित होता है। व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है।
तरह तरह के रोग भी उसे परेशान किये रहते हैं बुरे प्रभाव जीवन में तरह-तरह से बाधा पैदा कर सकते हैं। पूरी तरह से मेहनत करने पर भी अंतिम समय में सफलता से दूर हो सकते हैं। कालसर्प योग को लेकर यह धारणा बन चुकी है कि यह दु:ख और पीड़ा देने वाला ही योग है।
जबकि इस मान्यता को लेकर ज्योतिष के जानकार भी एकमत नहीं है। हालांकि यह बात व्यावहारिक रुप से सच पाई गई है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु के बीच सारे ग्रहों के आने से कालसर्प योग बन जाता हैं। उस व्यक्ति का जीवन असाधारण होता है। उसके जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे जाते है।वास्तव में कालसर्प योग के असर से कभी व्यक्ति को जीवन में अनेक कष्टों से दो-चार होना पड़ सकता है तो कभी यही योग ऊंचें पद, सम्मान और सफलता का कारण भी बन जाता है। इस तरह माना जा सकता है कि कालसर्प योग हमेशा पीड़ा देने वाला नहीं होता है।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार कालसर्प योग का शुभ-अशुभ फल राशियों के स्वभाव और तत्व पर पर निर्भर करता है।
ज्योतिष विज्ञान अनुसार छायाग्रहों यानि दिखाई न देने वाले राहू और केतु के कारण कुण्डली में बने कालसर्प योग के शुभ होने पर जीवन में सुख मिलता है, किंतु इसके बुरे असर से व्यक्ति जीवन भर कठिनाईयों से जूझता रहता है राहु शंकाओं का कारक है और केतु उस शंका को पैदा करने वाला इस कारण से जातक के जीवन में जो भी दुख का कारण है वह चिरस्थाई हो जाता है,इस चिरस्थाई होने का कारण राहु और केतु के बाद कोई ग्रह नही होने से कुंडली देख कर पता किया जाता है,यही कालसर्प दोष माना जाता है,यह बारह प्रकार का होता है। दोष शांति का अचूक काल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग पूजा का विशेष काल है। यह घड़ी ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अहम मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के देवता शेषनाग हैं। इसलिए यह दिन बहुत शुभ फल देने वाला माना जाता है। नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष शांति के लिए नाग और शिव की विशेष पूजा और उपासना जीवन में आ रही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों और बाधाओं को दूर कर सुखी और शांत जीवन की राह आसान बनाती है।
- राहु केतु मध्ये सप्तो विध्न हा काल सर्प सारिक:।
- सुतयासादि सकलादोषा रोगेन प्रवासे चरणं ध्रुवम।।
कालसर्प योग के प्रकार
मूलरूप से कालसर्प योग के बारह प्रकार होते हैं इन्हें यदि 12 लग्नों में विभाजित कर दें तो 12 x 12 =144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I परन्तु 144 प्रकार के कालसर्प योग तब संभव हैं जब शेष 7 ग्रह राहु से केतु के मध्य स्थित होँ I यदि शेष 7 ग्रह केतु से राहु के मध्य स्थित होँ, तो 12 x 12 = 144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I इसी प्रकार से कुल 144 + 144 = 288 प्रकार के कालसर्प योग स्थापित हो सकते हैं ईन सभी प्रकार के कालसर्प योगों का प्रतिफल एकदूसरे से भिन्न होता है I मूलरूप से कालसर्प योगों के बारह प्रकार हैं जो विश्वविख्यात सर्पों के नाम पर आधारित हैं.
1अनंत कालसर्प योग
2 कुलिक कालसर्प योग
3 वासुकि कालसर्प योग
4 शंखपाल कालसर्प योग
5पदम कालसर्प योग
6 महापदम कालसर्प योग
7 तक्षक कालसर्प योग
8 कारकोटक कालसर्प योग
9 शंखचूड़ कालसर्प योग
10 घातक कालसर्प योग 11विषधर कालसर्प योग 12 शेषनाग कालसर्प योग .
कालसर्प दोष और कष्ट ?
1.अनंत कालसर्प योग- यदि लग्न में राहु एवं सप्तम् में केतु हो, तो यह योग बनता है. जातक कभी शांत नहीं रहता. झूठ बोलना एवं षड़यंत्रों में फंस कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता रहता है.
2.कुलिक कालसर्प योग- यदि राहु धन भाव में एवं केतु अष्टम हो, तो यह योग बनता है. इस योग में पुत्र एवं जीवन साथी सुख, गुर्दे की बीमारी, पिता सुख का अभाव एवं कदम कदम पर अपमान सहना पड़ सकता है.
3.वासुकी कालसर्प योग- यदि कुंडली के तृतीय भाव में राहु एवं नवम भाव में केतु हो एवं इसके मध्य सारे ग्रह हों, तो यह योग बनता है. इस योग में भाई-बहन को कष्ट, पराक्रम में कमी, भाग्योदय में बाधा, नौकरी में कष्ट, विदेश प्रवास में कष्ट उठाने पड़ते हैं.
4.शंखपाल कालसर्प योग- यदि राहु नवम् में एवं केतु तृतीय में हो, तो यह योग बनता है. जातक भाग्यहीन हो अपमानित होता है, पिता का सुख नहीं मिलता एवं नौकरी में बार-बार निलंबित होता है.
5. पद्म कालसर्प योग- अगर पंचम भाव में राहु एवं एकादश में केतु हो तो यह योग बनता है, इस योग में संतान सुख का अभाव एवं वृद्धा अवस्था में दुखद होता है. शत्रु बहुत होते हैं, सट्टे में भारी हानि होती है.
6.महापद्म कालसर्प योग- यदि राहु छठें भाव में एवं केतु व्यय भाव में हो, तो यह योग बनता है इसमें पत्नी विरह, आय में कमी, चरित्र हनन का कष्ट भोगना पड़ता है.
7.तक्षक कालसर्प योग- यदि राहु सप्तम् में एवं केतु लग्न में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति नष्ट होती है, पत्नी सुख नहीं मिलता, बार-बार जेल यात्र करनी पड़ती है.
8.कर्कोटक कालसर्प योग- यदि राहु अष्टम में एवं केतु धन भाव में हो, तो यह योग बनता है. इस योग में भाग्य को लेकर परेशानी होगी. नौकरी की संभावनाएं कम रहती है, व्यापार नहीं चलता, पैतृक संपत्ति नहीं मिलती और नाना प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं.
9.शंखचूड़ कालसर्प योग- यदि राहु सुख भाव में एवं केतु कर्म भाव में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक के व्यवसाय में उतार-चढ़ाव एवं स्वास्थ्य खराब रहता है
10.घातक कालसर्प योग- यदि राहु दशम् एवं केतु सुख भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं, माता या पिता का वियोग होता है. .
11.विषधर कालसर्प योग- यदि राहु लाभ में एवं केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसा जातक घर से दूर रहता है, भाईयों से विवाद रहता है, हृदय रोग होता है एवं शरीर जर्जर हो जाता है.
12.शेषनाग कालसर्प योग- यदि राहु व्यय में एवं केतु रोग में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक शत्रुओं से पीड़ित हो शरीर सुखित नहीं रहेगा, आंख खराब होगा एवं न्यायालय का चक्कर लगाता रहेगा.
काल सर्प योग में जन्मे जातक में प्रायः निम्नलिखित लक्षण पाए जाते है।
1- सपने में उसे नदी, तालाब,कुए,और समुद्र का पानी दिखाई देता है।
2- सपने में वह खुद को पानी में गिरते एवं उससे बाहर निकलने का प्रयास करते करते हुए देखता है।
3- रात को उल्टा होकर सोने पर ही चेन की नींद आती है |
4- सपने में उसे मकान अथवा पेरो से फल आदि गिरते दिखाई देता है।
5- पानी से ओर ज्यादा ऊंचाई से डर लगता है |
6- मन में कोई अज्ञात भय बना रहता है |
7- वह खुद को अन्य लोगो से झगड़ते हुए देखता है।
8- उन्हें बुरे सपने आते है जिसमे अक्सर साँप दिखाई देता है।
9- यदि वह संतानहीन हो तो उसे किसी स्त्री के गोद में मृत बालक दिखाई देता है।
10- - सपने उसे विधवा स्त्रीयां दिखाई पड़ती है।
11- नींद में शरीर पर साप रेंगता महसूस होता है।
12- श्रवन मास में मन हमेशा प्रफुलित रहता है |
ये कुछ प्रमुख लक्षण है जों किसी भी कालसर्प वाले जातक में दिखाई देते है कहने का मतलब यह की इन मे से सभी लक्षण नहीं हों तो भी काफी लक्षण मिलते है | इसलिए जिसकी भी कुंडली में कालसर्प योग हों वो छोटे उपाय करे ओर जीवन में खुशियों का आनंद ले |
कालसर्प दोष भंग के लिए दैनिक छोटे उपाय
1 108 राहु यंत्रों को जल में प्रवाहित करें।
2 सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
3 शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग.।
4 अमावस्या के दिन पितरों को शान्त कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।
5 शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
6. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान पर सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।.
7 शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाये व मंत्र जाप करें (ग्यारह शनिवार )
8 सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
9 काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें ।
10 सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी में नागदेवता का विसर्जन करें।
11 श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
12 प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। हर रोज श्रावण के महिने में करें।
13. सरल उपाय- कालसर्प योग वाला युवा श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।
14 यदि रोजगार में तकलीफ आ रही है अथवा रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा है तो पलाश के फूल गोमूत्र में डूबाकर उसको बारीक करें। फिर छाँव में रखकर सुखाएँ। उसका चूर्ण बनाकर चंदन के पावडर में मिलाकर शिवलिंग पर त्रिपुण्ड बनाएँ। 41 दिन दिन में नौकरी अवश्य मिलेगी।.
15 शिवलिंग पर प्रतिदिन मीठा दूध उसी में भाँग डाल दें, फिर चढ़ाएँ इससे गुस्सा शांत होता है, साथ ही सफलता तेजी से मिलने लगती है।
16 किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 21 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प शिवलिंग पर समर्पित करें।
17 शत्रु से भय है तो चाँदी के अथवा ताँबे के सर्प बनाकर उनकी आँखों में सुरमा लगा दें, फिर शिवलिंग पर चढ़ा दें, भय दूर होगा व शत्रु का नाश होगा।
18 यदि पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका में क्लेश हो रहा हो, आपसी प्रेम की कमी हो रही हो तो भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या बालकृष्ण की मूर्ति जिसके सिर पर मोरपंखी मुकुट धारण हो घर में स्थापित करें एवं प्रतिदिन उनका पूजन करें एवं ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: शिवाय का यथाशक्ति जाप करे। कालसर्प योग की शांति होगी।
19 किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
20 किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें
21 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
22 महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
23 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
24 86 शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें
25 नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
26 प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
27 कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराया जाना चाहिए और उनकी सलाह से राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए।)-
28 शिव के ही अंश बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है।
29 प्रथम पूज्य शिव पुत्र श्री गणेश को विघ्रहर्ता कहा जाता है। इसलिए कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए गणेश पूजा भी करनी चाहिए।
30-पुराणों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालिय नाग का मद चूर किया था। इसलिए इस दोष शांति के लिए श्री कृष्ण की आराधना भी श्रेष्ठ है।
31विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
32 एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें