ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले व्यक्ति को ज्योतिषी, ज्योतिर्विद, कालज्ञ, त्रिकालदर्शी, सर्वज्ञ आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। सांवत्सर, गुणक देवज्ञ, ज्योतिषिक, ज्योतिषी, मोहूर्तिक, सांवत्सरिक आदि शब्द भी ज्योतिषी के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।
• ज्योतिष व ज्योतिषी के संबंध में सभी परिभाषाओं का सुन्दर समाहार हमें वराहमिहिर की वृहद संहिता से प्राप्त होता है। वराहमिहिर लिखते हैं ग्रह गणित (सिद्धांत) विभाग में स्थित पौलिश, रोमक, वरिष्ट सौर, पितामह इन पाँच सिद्धांतों मेंप्रतिपादित युग, वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र, प्रहर, मुहूर्त, घटी, पल, प्राण, त्रुटि आदि के क्षेत्र का सौर, सावन, नक्षत्र, चन्द्र इन चारों मानों को तथा अधिक मास, क्षय मास, इनके उत्पत्ति कारणों के सूर्य आदि ग्रहों को शीघ्र तुन्द दक्षिणा उत्तर, नीच और उच्च गतियों के कारणों को सूर्य-चन्द्र ग्रहण में स्पर्श, मोक्ष इनके दिग्ज्ञान, स्थिति, विभेद वर्ग को बताने में दक्ष, पृथ्वी, नक्षत्रों के भ्रमण, संस्थान अक्षांश, चरखण्ड, राश्योदय, छाया, नाड़ी, करण आदि को जानने वाला, ज्योतिष विषयक समस्त प्रकार की शंकाओं व प्रश्न भेदों को जानने वाला तथा परीक्षा की काल की कसौटी में, आग और शरण से परीक्षित शुद्ध स्वर्ण की तरह स्वच्छ, साररूप वाणी बोलने वाला, निश्चयात्मक ज्ञान से सम्पन्न व्यक्ति ज्योतिषी कहलाता है। इस प्रकार से शास्त्र ज्ञान से सम्पन्न ज्योतिषी को होरा शास्त्र में भी अच्छी तरह से निष्णात होना चाहिए, तभी गुण सम्पन्न ज्योतिषी की वाणी कभी भी खाली नहीं जाती।
ज्योतिषी के लक्षण
एक ज्योतिषी के लक्षण बताते हुए आचार्य वराहमिहिर कहते हैं कि ज्योतिषी को देखने में प्रिय, वाणी में संयत, सत्यवादी, व्यवहार में विनम्र होना चाहिए। इसके अतिरिक्त वह दुर्व्यसनों से दूर, पवित्र अन्तःकरण वाला, चतुर, सभा में आत्मविश्वास के साथ बोलने वाला, प्रतिभाशाली, देशकाल व परिस्थिति को जानने वाला, निर्मल हृदय वाला, ग्रह शान्ति के उपायों को जानने वाला, मन्त्रपाठ में दक्ष, पौष्टिक कर्म को जानने वाला, अभिचार मोहन विद्या को जानने वाला, देवपूजन, व्रत-उपवासों को निरंतर, प्राकृतिक शुभाशुभों के संकेतों को समझाने वाला, ग्रहों की गणित, सिद्धांत संहिता व होरा तीनों में निपुण ग्रंथी के अर्थ को जानने वाला व मृदुभाषी होना चाहिए।
सामुद्रिक शास्त्र में ज्योतिषी के लिए हिदायत दी गई है कि सूर्योदय के पहले, सूर्यास्त के बाद, मार्ग में चलते हुए, जहाँ हँसी-मनोविनोद होता हो, उस स्थान में एवं अज्ञानी लोगों की सभा में भविष्यवाणी न करें।
ज्योतिषी को अधिकतम अपने स्थान पर बैठकर जिज्ञासु व्यक्ति की दक्षिणा का फल, पुष्प व पुण्य भाव को प्राप्त करने के पश्चात अपने ईष्ट को ध्यान करके ही हस्तरेखाओं एवं कुण्डलियों पर फलादेश करना चाहिए क्योंकि ईश्वर, ज्योतिषी व राजा के पास खाली हाथ आया व्यक्ति खाली ही जाता है।
• जन्म कुंडली आप के जीवन में प्रकाश ला सकती है , अगर किसी का जन्म दिन , जन्म समय और जन्म स्थान एकदम ठीक है तो किसी भी विद्वान से अपनी कुंडली के बारे में गड़ना जरुर कराएँ … जन्म पत्रिका के अनुसार कार्य करने से जीवन में प्रायः सफलता मिलती है…. कर्मो के अनुसार अच्छे – बुरे फल मिलते है,वैदिक विधियों द्वारा किया गया उपाय कभी खाली नहीं जाता है , अच्छे कर्मों से आप अपनी किस्मत बना भी सकते है और उसे ख़राब भी कर सकते है ..….. जन्म पत्रिका से अनेक लाभ है …
• कुंडली में १२ भाव होते है प्रत्येक भाव का अपना फल है जैसे :-
• १-आपके जीवन में कौन कौन सी परेशानियां हैं, और कब आएगी…? , शरीर क्यों और कब साथ नहीं देता इसका पता होना चाहिए।…? इन्शान के अन्दर सभी गुण होते हुए भी वो आखिर लाचार क्यों रहता है ….?
• २- धन – सम्पति सम्बंधित जानकारी …? . धन का संग्रह ना होना ,
• ३- आपकी कुण्डली में कहीं दोष तो नहीं जो आपके भाई बहन के साथ सम्बन्ध खराब कर दे और साझेदारी या व्यापर करने में आप को आपर में कलह करना पड़े.,…?
• ४- मकान , वाहन, जमीन-जायदाद लेने के बाद या अचानक काम में नुक्सान या लेने के बाद भी सुख- सुविधावो में कमी या आपके घर में क्लेश क्यों रहता है ?
• ५. किस विषय को चुने जो आप को नई उचाई पर ले जायेगा…? साथ ही संतान के बारे में जाने की हमारे बच्चे दुख का कारण तो नही बन रहें हैं और आगे साथ देगे भी या नहीं …..?
• ६- आपके जीवन में कौन सा बुरा वक्त कब और कैसे आएगा , कहीं आपके मित्र ही शत्रु न बन जाये , या आप का अपना ही शारीर आप का साथ न छोड़ दे .. दुर्घटना या बिमारी कैसे आ सकती है, कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसके लिए आपने अपना पूरा जीवन अच्छा करें वही आपको धोखा दें .?,
• ७- आपकी कुण्डली में शादी के बाद जीवन साथी का सुख है या नहीं और होगा भी तो कब होगी , प्रेम विवाह करने के बाद भी तलाक की मुशीबत न आये …?
• ८- विदेश यात्रा … कुंडली में जन्म स्थान से दूर जाने को ही विदेशा यात्रा कहते है ,,,,? अकस्मात दुर्घटना कही आप की जीवन में तो नहीं होगी….?
• ९- आप का भाग्य आप का साथ देगा या नहीं , कही आप अपना कीमती समय बस यूँ ही मौज मस्ती में गुजार रहे है, आपको बहुत ज्यादा सफलता क्यों नही मिलती या कब मिलेगी ?….? १०- व्यापर करे तो कौन सा करें , पिता से कितना सहयोग मिलेगा , पैत्रिक सम्पति मिलेगी या नहीं ,..
• ११- जीवन में लाभ होगा या नहीं और होगा भी तो कब होगा और कैसे या हमारे बड़े भाई – बहन या सगे सम्बन्धी साथ देगे या नहीं , ..?
• १२ भाव हमें हानी के बारे में बताता है जैसे किस कार्य को करे जिससे हमें हानी न हो या कही आपका बिज़नस पार्टनर ही आप को नुकसान न पहुंचा दे , या जिसे आप अपना समझते है वो सिर्फ आप की दौलत से प्यार करते है …..
• जिस भाव में जो ग्रह अशुभ फल प्रदान करे उसका हमें उपाय करना चाहिए ,
ज्योतिष के अनुसार कुंडली में बताए गए अशुभ योगों में से एक है कालसर्प योग। इस योग के प्रभाव व्यक्ति को कड़ी मेहनत करना पड़ती है, फिर भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष बन रहा है तो उसे यहां बताया जा रहा उपाय करना चाहिए...
यदि कुंडली में कालसर्प दोष हो तो इस योग के कारण पैसों की तंगी बनी रहती है और पारिवारिक रिश्तों में खटास उत्पन्न होने की संभावनाएं रहती हैं।
कालसर्प योग के प्रभाव से मुक्ति के कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। इसकीविधिवत पूजा के लिए केवल दो ही स्थान नासिक और उज्जैन श्रेष्ठ माने गए हैं। शास्त्रों के अनुसार इन दो स्थानों पर ही कालसर्प योग की शांति के लिए पूजा कराने का विधान बताया गया है।
कालसर्प दोष के निवारण की पूजा के अतिरिक्त एक अन्य उपाय बताया गया है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग है उसकी शांति के लिए उसे किसी पवित्र नदी में छोटे से चांदी के नाग-नागिन बनवाकर बहा देना चाहिए।
किसी भी शुभ मुहूर्त में चांदी के नाग-नागिन का छोटा सा जोड़ा बनवाएं। फिर ब्रह्ममुहूर्त में स्नान आदि कर्म करने के बाद नदी के तट पर जाएं। इसके बाद इष्टदेव, शिवजी तथा अन्य देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए।
इसके बाद नाग देवता से कालसर्प योग के दुष्प्रभाव समाप्त करने की प्रार्थना करें और चांदी के नाग-नागिन को नदी में प्रवाहित कर दें। इस उपाय से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां शांत होने लगती है। पैसों से जुड़ी समस्याओं में कमी आ जाती है।
अब हम आपको कुछ वो योग बता रहे हैं जो किसी स्त्री की कुंडली में विद्यमान हों तो उसे दामफ्त्य सुख प्रदान करने वाले पति की प्राप्ति सहज रूप से होती है.
१. सप्तम भाव में सप्तमेष स्वग्रही हो
२. सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दॄष्टि ना होकर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो अथवा स्वयं सप्तमेश सप्तम भाव को देखता हो.
३. सप्तमस्थ कोई नीच ग्रह ना हो यदि सप्त भाव में कोई उच्च ग्रह हो तो अति सुंदर योग होता है.
४. सप्तम भाव में कोई पाप ग्रह ना होकर शुभ ग्रह विद्यमान हों और षष्ठेश या अष्टमेश की उपस्थिति सप्तम भाव में कदापि नही होनी चाहिये.
५. स्वयं सप्तमेश को षष्ठ, अष्टम एवम द्वादश भाव में नहीं होना चाहिये. सप्तमेश के साथ कोई पाप ग्रह भी नही होना चाहिये साथ ही स्वयं सप्तमेश नीच का नही होना चाहिये.
६. सप्तमेश उच्च राशिगत होकर केंद्र त्रिकोण में हो.
७. वॄहस्पति भी स्वग्रही या उच्च का होकर बलवान हो, दु:स्थानगत ना हो, उस पर पाप प्रभाव ना हो तो अति श्रेष्ठ दांपत्य सुख प्राप्त होता है.
८ मंगल भी बलवान हो. मंगल पर राहु शनि की युति अथवा दॄष्टि प्रभाव नही होना चाहिये.
• ज्योतिष व ज्योतिषी के संबंध में सभी परिभाषाओं का सुन्दर समाहार हमें वराहमिहिर की वृहद संहिता से प्राप्त होता है। वराहमिहिर लिखते हैं ग्रह गणित (सिद्धांत) विभाग में स्थित पौलिश, रोमक, वरिष्ट सौर, पितामह इन पाँच सिद्धांतों मेंप्रतिपादित युग, वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र, प्रहर, मुहूर्त, घटी, पल, प्राण, त्रुटि आदि के क्षेत्र का सौर, सावन, नक्षत्र, चन्द्र इन चारों मानों को तथा अधिक मास, क्षय मास, इनके उत्पत्ति कारणों के सूर्य आदि ग्रहों को शीघ्र तुन्द दक्षिणा उत्तर, नीच और उच्च गतियों के कारणों को सूर्य-चन्द्र ग्रहण में स्पर्श, मोक्ष इनके दिग्ज्ञान, स्थिति, विभेद वर्ग को बताने में दक्ष, पृथ्वी, नक्षत्रों के भ्रमण, संस्थान अक्षांश, चरखण्ड, राश्योदय, छाया, नाड़ी, करण आदि को जानने वाला, ज्योतिष विषयक समस्त प्रकार की शंकाओं व प्रश्न भेदों को जानने वाला तथा परीक्षा की काल की कसौटी में, आग और शरण से परीक्षित शुद्ध स्वर्ण की तरह स्वच्छ, साररूप वाणी बोलने वाला, निश्चयात्मक ज्ञान से सम्पन्न व्यक्ति ज्योतिषी कहलाता है। इस प्रकार से शास्त्र ज्ञान से सम्पन्न ज्योतिषी को होरा शास्त्र में भी अच्छी तरह से निष्णात होना चाहिए, तभी गुण सम्पन्न ज्योतिषी की वाणी कभी भी खाली नहीं जाती।
ज्योतिषी के लक्षण
एक ज्योतिषी के लक्षण बताते हुए आचार्य वराहमिहिर कहते हैं कि ज्योतिषी को देखने में प्रिय, वाणी में संयत, सत्यवादी, व्यवहार में विनम्र होना चाहिए। इसके अतिरिक्त वह दुर्व्यसनों से दूर, पवित्र अन्तःकरण वाला, चतुर, सभा में आत्मविश्वास के साथ बोलने वाला, प्रतिभाशाली, देशकाल व परिस्थिति को जानने वाला, निर्मल हृदय वाला, ग्रह शान्ति के उपायों को जानने वाला, मन्त्रपाठ में दक्ष, पौष्टिक कर्म को जानने वाला, अभिचार मोहन विद्या को जानने वाला, देवपूजन, व्रत-उपवासों को निरंतर, प्राकृतिक शुभाशुभों के संकेतों को समझाने वाला, ग्रहों की गणित, सिद्धांत संहिता व होरा तीनों में निपुण ग्रंथी के अर्थ को जानने वाला व मृदुभाषी होना चाहिए।
सामुद्रिक शास्त्र में ज्योतिषी के लिए हिदायत दी गई है कि सूर्योदय के पहले, सूर्यास्त के बाद, मार्ग में चलते हुए, जहाँ हँसी-मनोविनोद होता हो, उस स्थान में एवं अज्ञानी लोगों की सभा में भविष्यवाणी न करें।
ज्योतिषी को अधिकतम अपने स्थान पर बैठकर जिज्ञासु व्यक्ति की दक्षिणा का फल, पुष्प व पुण्य भाव को प्राप्त करने के पश्चात अपने ईष्ट को ध्यान करके ही हस्तरेखाओं एवं कुण्डलियों पर फलादेश करना चाहिए क्योंकि ईश्वर, ज्योतिषी व राजा के पास खाली हाथ आया व्यक्ति खाली ही जाता है।
• जन्म कुंडली आप के जीवन में प्रकाश ला सकती है , अगर किसी का जन्म दिन , जन्म समय और जन्म स्थान एकदम ठीक है तो किसी भी विद्वान से अपनी कुंडली के बारे में गड़ना जरुर कराएँ … जन्म पत्रिका के अनुसार कार्य करने से जीवन में प्रायः सफलता मिलती है…. कर्मो के अनुसार अच्छे – बुरे फल मिलते है,वैदिक विधियों द्वारा किया गया उपाय कभी खाली नहीं जाता है , अच्छे कर्मों से आप अपनी किस्मत बना भी सकते है और उसे ख़राब भी कर सकते है ..….. जन्म पत्रिका से अनेक लाभ है …
• कुंडली में १२ भाव होते है प्रत्येक भाव का अपना फल है जैसे :-
• १-आपके जीवन में कौन कौन सी परेशानियां हैं, और कब आएगी…? , शरीर क्यों और कब साथ नहीं देता इसका पता होना चाहिए।…? इन्शान के अन्दर सभी गुण होते हुए भी वो आखिर लाचार क्यों रहता है ….?
• २- धन – सम्पति सम्बंधित जानकारी …? . धन का संग्रह ना होना ,
• ३- आपकी कुण्डली में कहीं दोष तो नहीं जो आपके भाई बहन के साथ सम्बन्ध खराब कर दे और साझेदारी या व्यापर करने में आप को आपर में कलह करना पड़े.,…?
• ४- मकान , वाहन, जमीन-जायदाद लेने के बाद या अचानक काम में नुक्सान या लेने के बाद भी सुख- सुविधावो में कमी या आपके घर में क्लेश क्यों रहता है ?
• ५. किस विषय को चुने जो आप को नई उचाई पर ले जायेगा…? साथ ही संतान के बारे में जाने की हमारे बच्चे दुख का कारण तो नही बन रहें हैं और आगे साथ देगे भी या नहीं …..?
• ६- आपके जीवन में कौन सा बुरा वक्त कब और कैसे आएगा , कहीं आपके मित्र ही शत्रु न बन जाये , या आप का अपना ही शारीर आप का साथ न छोड़ दे .. दुर्घटना या बिमारी कैसे आ सकती है, कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसके लिए आपने अपना पूरा जीवन अच्छा करें वही आपको धोखा दें .?,
• ७- आपकी कुण्डली में शादी के बाद जीवन साथी का सुख है या नहीं और होगा भी तो कब होगी , प्रेम विवाह करने के बाद भी तलाक की मुशीबत न आये …?
• ८- विदेश यात्रा … कुंडली में जन्म स्थान से दूर जाने को ही विदेशा यात्रा कहते है ,,,,? अकस्मात दुर्घटना कही आप की जीवन में तो नहीं होगी….?
• ९- आप का भाग्य आप का साथ देगा या नहीं , कही आप अपना कीमती समय बस यूँ ही मौज मस्ती में गुजार रहे है, आपको बहुत ज्यादा सफलता क्यों नही मिलती या कब मिलेगी ?….? १०- व्यापर करे तो कौन सा करें , पिता से कितना सहयोग मिलेगा , पैत्रिक सम्पति मिलेगी या नहीं ,..
• ११- जीवन में लाभ होगा या नहीं और होगा भी तो कब होगा और कैसे या हमारे बड़े भाई – बहन या सगे सम्बन्धी साथ देगे या नहीं , ..?
• १२ भाव हमें हानी के बारे में बताता है जैसे किस कार्य को करे जिससे हमें हानी न हो या कही आपका बिज़नस पार्टनर ही आप को नुकसान न पहुंचा दे , या जिसे आप अपना समझते है वो सिर्फ आप की दौलत से प्यार करते है …..
• जिस भाव में जो ग्रह अशुभ फल प्रदान करे उसका हमें उपाय करना चाहिए ,
ज्योतिष के अनुसार कुंडली में बताए गए अशुभ योगों में से एक है कालसर्प योग। इस योग के प्रभाव व्यक्ति को कड़ी मेहनत करना पड़ती है, फिर भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष बन रहा है तो उसे यहां बताया जा रहा उपाय करना चाहिए...
यदि कुंडली में कालसर्प दोष हो तो इस योग के कारण पैसों की तंगी बनी रहती है और पारिवारिक रिश्तों में खटास उत्पन्न होने की संभावनाएं रहती हैं।
कालसर्प योग के प्रभाव से मुक्ति के कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। इसकीविधिवत पूजा के लिए केवल दो ही स्थान नासिक और उज्जैन श्रेष्ठ माने गए हैं। शास्त्रों के अनुसार इन दो स्थानों पर ही कालसर्प योग की शांति के लिए पूजा कराने का विधान बताया गया है।
कालसर्प दोष के निवारण की पूजा के अतिरिक्त एक अन्य उपाय बताया गया है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग है उसकी शांति के लिए उसे किसी पवित्र नदी में छोटे से चांदी के नाग-नागिन बनवाकर बहा देना चाहिए।
किसी भी शुभ मुहूर्त में चांदी के नाग-नागिन का छोटा सा जोड़ा बनवाएं। फिर ब्रह्ममुहूर्त में स्नान आदि कर्म करने के बाद नदी के तट पर जाएं। इसके बाद इष्टदेव, शिवजी तथा अन्य देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए।
इसके बाद नाग देवता से कालसर्प योग के दुष्प्रभाव समाप्त करने की प्रार्थना करें और चांदी के नाग-नागिन को नदी में प्रवाहित कर दें। इस उपाय से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां शांत होने लगती है। पैसों से जुड़ी समस्याओं में कमी आ जाती है।
अब हम आपको कुछ वो योग बता रहे हैं जो किसी स्त्री की कुंडली में विद्यमान हों तो उसे दामफ्त्य सुख प्रदान करने वाले पति की प्राप्ति सहज रूप से होती है.
१. सप्तम भाव में सप्तमेष स्वग्रही हो
२. सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दॄष्टि ना होकर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो अथवा स्वयं सप्तमेश सप्तम भाव को देखता हो.
३. सप्तमस्थ कोई नीच ग्रह ना हो यदि सप्त भाव में कोई उच्च ग्रह हो तो अति सुंदर योग होता है.
४. सप्तम भाव में कोई पाप ग्रह ना होकर शुभ ग्रह विद्यमान हों और षष्ठेश या अष्टमेश की उपस्थिति सप्तम भाव में कदापि नही होनी चाहिये.
५. स्वयं सप्तमेश को षष्ठ, अष्टम एवम द्वादश भाव में नहीं होना चाहिये. सप्तमेश के साथ कोई पाप ग्रह भी नही होना चाहिये साथ ही स्वयं सप्तमेश नीच का नही होना चाहिये.
६. सप्तमेश उच्च राशिगत होकर केंद्र त्रिकोण में हो.
७. वॄहस्पति भी स्वग्रही या उच्च का होकर बलवान हो, दु:स्थानगत ना हो, उस पर पाप प्रभाव ना हो तो अति श्रेष्ठ दांपत्य सुख प्राप्त होता है.
८ मंगल भी बलवान हो. मंगल पर राहु शनि की युति अथवा दॄष्टि प्रभाव नही होना चाहिये.



